*भारत रत्न:तुतहरी बजाने वाले, गिल्ली डंडा खेलने वाले व विदेशियो को भारत रत्न लेकिन रामानंद सागर,वी डी सावरकर....भारत रत्न के लायक नही ?

 भारत रत्न:तुतहरी बजाने वाले, गिल्ली डंडा खेलने वाले व विदेशियो को भारत रत्न लेकिन रामानंद सागर,वी डी सावरकर....भारत रत्न के लायक नही ?


भारत सरकार हर साल कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल में अपना योगदान देने के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान देती है। यह सम्मान भारत रत्न के नाम से जाना जाता है।

अब तक दो ऐसे विदेशी भी रहे हैं, जिन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

इस अवॉर्ड को पाने वाले पहले विदेशी थे खान अब्दुल गफ्फार खान। वहीं अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को भी इस सम्मान से नवाजा जा चुका है।

खान अब्दुल गफ्फार खान भारत की आजादी के आंंदोलन में सक्रिय थे और गांधी जी के अनुयायी भी थे।इनका योगदान दिख गया लेकिन वी डी सावरकर,भगत सिंह,सुभाष चन्द्र बोस,चन्द्र शेखर आजाद का योगदान नही दिखा जो देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर गये वह भारत रत्न सम्मान के लायक नही थे।

अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लंबी जंग लड़ी।वह भी महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे।विदेश मे रंग भेद लड़ाई लड़ने वाले भारत रत्न हो सकते है लेकिन देश की लड़ाई लड़ने वाले स्वतन्त्रा संग्राम के नायक भारत रत्न नही हो सकते ।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की बात करें कि वह अपने फन के इस कदर माहिर थे कि उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।कहा जाता है कि बिस्मिल्लाह खां ने बजाई थी आजाद भारत में पहली शहनाई इसलिए भारत रत्न हो गये ।लेकिन देश को आजाद कराने के लिए ईट से ईट बजाकर फिरंगियो को धूल चटाने वाले भारत रत्न नही है।

धारावाहिक रामायण के निर्देशक रामानंद सागर ने भगवान श्री राम की कथा व उनके चरित्र को घर-घर पहुंचाया पर देश में उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाया है। वह आजादी के बाद के भारत में पूरी व्यवस्था का विरोध करके हिदू आस्था का प्रसार करने के लिए अकेले खड़े थे। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में श्रीराम के प्रति भावनाओं और भक्ति को जागृत करने के लिए रामायण जैसा आध्यात्मिक धारावाहिक बनाकर न केवल लोकप्रियता हासिल की बल्कि रिकार्ड भी बनाया।

रामानंद की सांस्कृतिक जागृति की क्रांति मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान है। इस लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए।लेकिन बहुत ही दुखदाई है कि तुतुहरी मे योगदान दिख गया लेकिन सागर जी का योगदान नही दिखा । 

कांग्रेस पार्टी ‘रामायण’ तक को सेक्युलर के तौर पर दिखाने पर तुली थी और ऐसा न करने पर वे रामानंद सागर के विश्व प्रसिद्ध शो को बीच में बंद करने की धमकियाँ भी देते थे। रामानंद सागर के पुत्र और फिल्मकार प्रेम सागर अपनी पुस्तक में बताते हैं कि तत्कालीन दूरदर्शन के निदेशक भास्कर घोष ने मांग की थी कि रामायण को ‘थोड़ा और धर्मनिरपेक्ष बनाना चाहिए’, ताकि दूरदर्शन पर ध्रुवीकरण के आरोप न लगे। इतना ही नहीं, वे रामायण को 26 हफ्तों के प्रसारण का समय भी देने को तैयार नहीं थे, जिससे शो बीच में ही बंद हो जाए।”

लेकिन ये शो इतना विख्यात हुआ, और लोगों की आस्था इस शो से इतनी जुड़ चुकी थी कि न चाहते हुए भी भास्कर घोष को अपना विवादित निर्णय बदलना पड़ा था। दरअसल, तब जन समर्थन के कारण ही राजीव गांधी प्रशासन ने भास्कर घोष पर दबाव बनाया, अन्यथा वो तो रामायण के प्रसारण के लिए ही तैयार नहीं था। अब आपको पता है कि ये भास्कर घोष किसके पिता हैं? ये उसी सागरिका घोष के पिता हैं, जो आए दिन केंद्र सरकार और सनातन धर्म के विरुद्ध विष उगलती हैं, और निरंतर सनातन धर्म को अपमानित करने का प्रयास करती है।

आज रामायण इतनी प्रसिद्ध की बड़े से बड़े वेब सीरीज़ भी इसके सामने कहीं नहीं ठहरते। उदाहरण के लिए TFIPost के एक अन्य लेख के अनुसार,

“दुनिया भर में देखी जाने वाली सबसे चर्चित सीरिज गेम ऑफ थ्रोन्स और फ्रेंड्स के भी रामायण ने व्यूअसशीप में रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं l रामायण 77 मिलियन व्यूअरशीप के साथ नंबरवन बन गया ह l बता दें कि F R I E N D S (फ्रेंड्स) के दर्शकों की संख्या 52.5 मिलियन है l वहीं गेम ऑफ थ्रोन्स की सातवें सीजन तक, सभी प्लेटफार्मों में औसत दर्शक संख्या मात्र 30 मिलियन प्रति एपिसोड है”।

1883 में मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में जन्मे वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। इसके साथ ही वह एक राजनेता, वकील, लेखक और हिंदुत्व दर्शनशास्त्र के प्रतिपादक थे। मुस्लिम लीग के जवाब में उन्होंने हिंदु महासभा से जुड़कर हिंदुत्व का प्रचार किया था।

वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था।करीब 25 सालों तक सावरकर किसी न किसी रूप में अंग्रेजों के कैदी रहे। उन्हें 25-25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं और सजा काटने के लिए भारत से दूर अंडमान यानी 'काला पानी' भेज दिया गया।

Post a Comment

Previous Post Next Post