जब इस शिव मंत्र का जाप करते बालक से यमराज भी हुए परास्त!
मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे। समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए।
यमदूतों ने देखा कि बालक महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था।
महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है।
सावन में काशी के प्रमुख शिवालयों में आस्था का सावन उमड़ता है। बाबा दरबार के बाद गंगा गोमती संगम स्थल कैथी के मारकंडेय महादेव मंदिर की अपनी अनोखी मान्यता है।
काशी में घोर तप के बाद वरदान स्वरूप जन्मे मार्कंडेय की अल्पायु को शिव के तप ने अमर किया था। मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप की।
मारकण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। व्याधि और दुख से ग्रसित लोग यहां आते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी नगरी कैथी में गंगा गोमती तट पर मौजूद है।
यहां की धरती ऋषि मारकण्डेय शैव-वैष्णव एकता के तौर पर प्रसिद्ध हैं। मारकण्डेय महादेव के मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ने वाले बेल पत्र पर चन्दन से श्रीराम का नाम लिखने की मान्यता है।
मान्यताओं के मुताबित 'महाशिवरात्रि' के दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखने के बाद महादेव को बेल पत्र अर्पित करने से मनोकामना पूर्ण होती है।
मान्यता है कि मृकण्ड ऋषि व पत्नि मरन्धती दोनों ही पुत्रहीन थे। नैमिषारण्य, सीतापुर में तपस्या के दौरान लोग ऋषि को देख कर अक्सर ताना देते थे। बाद में पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ वह विंध्याचल में तपस्या की तो ब्रह्मा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्ति का विधान बताया। मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम कैथी जाकर उपासना करने लगे।
शंकर जी ने उन्हें तप के बाद दर्शन दिया और शिव ने गुणवान पुत्र की कामना की। मगर अल्पायु मिलने से वह दुखी भी हुए। बाद में मारकण्डेय का जन्म हुआ तो मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा के लिए गुरु आश्रम भेजा।
बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी तो बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने मारकण्डेय को सब कुछ बता दिया।
संकटकाल में भोले शंकर की शरण में शिव पार्थिव की पूजा करने लगे। समय आने पर यमराज ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन इस बालक को देखकर दूतों का साहस टूट गया।
इसके बाद यमराज स्वयं भैंसे पर सवार पहुंचे तो मारकण्डेय घबरा गये और उनके हाथ से शिवलिंग धरती पर गिर गया। यमराज को देख शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और मारकण्डेय को यमराज से बचाया।
इसके बाद यमराज को चेतावनी दी कि मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ बिगाड़ नहीं सकते। इसकी आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी। तब से मान्यताओं के अनुसार मार्कंडेय ऋषि का तपोधाम मार्कंडेय महादेव धाम के नाम से चर्चित हो गया।
वहीं मार्कंडेय पुराण के साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर लोग अभय होते हैं। इसके साथ ही संतान की कामना से आने वालों के लिए सावन मास काफी पुण्य का मास माना जाता है।
मरणासन्न व्यक्ति की प्राणरक्षा में समर्थ महामंत्र ‘महामृत्युंजय’ की ख्याति मार्कण्डेय के ही कारण है। इस मंत्र पर लोक आस्था इतनी अधिक है कि वैदिक मंत्र होने के बावजूद महामृत्युंजय मंत्र मार्कण्डेय रचित माना जाता है।
मार्कण्डेय इतने महान ऋषि हैं कि उनकी उपस्थिति भगवान श्रीराम के युग से पहले, श्रीराम कथा में और तदनंतर महाभारत काल तक सुलभ है। मार्कण्डेय पुराण इन्हीं की रचना है, जिसका एक अंश वह दुर्गासप्तशती है, जिसका नवरात्र में सश्रद्धा पारायण किया जाता है।
महाभारत के अनुसार-
मार्कण्डेय ने हज़ार-हज़ार युगों के अंत में होने वाले अनेक महाप्रलय देखे हैं।
महर्षि मार्कण्डेय को पुराणों में अष्ट चिरंजीवियों में एक माना गया है।
इस सम्बंध में प्रसिद्ध श्लोक है- अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। अर्थात अश्वत्थामा, दैत्यराज बली, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि सदैव जीवित हैं।
इनका स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु प्राप्त करता है। इन सबमें भी अकेले मार्कण्डेय हैं जो ब्रह्माजी को छोड़ आयु में शेष सभी से बड़े हैं।
गायत्री मंत्र की भांति महामृत्युंजय मंत्र भी अत्यंत महिमावान व प्रभावी है। महामृत्युंजय मंत्र मरणासन्न व्यक्ति की मृत्यु से रक्षा करने में कारगर माना जाता है। महत्वपूर्ण है कि यह मंत्र सबसे पहले ऋग्वेद के सातवें मंडल के 59वें सूक्त में आया।
रुद्र देवता के प्रति ऋषि वसिष्ठ द्वारा अनुष्टुप छंद में कृत यह इस सूक्त का बारहवां मंत्र है, जो बाद में यजुर्वेद से होते हुए अन्यत्र पहुंचा। मगर लोक-विश्वास है कि महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कण्डेय ने ही की और इसी के बल पर स्वयं को मृत्यु से बचाकर चिर जीवन पाया। इसीलिए प्रियजनों को जीवनदान के निमित्त लोग इसका जाप कराते हैं।
विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत में महामुनि मार्कण्डेय अनेकत्र उपस्थित हैं। उन्होंने धृतराष्ट्र को त्रिपुराख्यान सुनाया तो भीष्म को श्रीकृष्ण की कथा सुनाई थी।
वे युधिष्ठिर की राजसभा में आए थे और भीष्म के शरशय्याशायी होने पर अनेक ऋषि-मुनियों के साथ उनके पास खड़े हुए थे। इन्होंने नचिकेता से शिव सहस्रनाम का उपदेश ग्रहण कर उसे उपमन्यु को दिया था। पाण्डवों के वनवास के समय ये दो बार उनसे मिले थे।