कॉन्ग्रेसी हुकूमत ने कब कब कराया था ब्राह्मणों का नरसंहार?..जाने कांग्रेस का काला सच !

कॉन्ग्रेसी हुकूमत ने कब कब कराया था ब्राह्मणों का नरसंहार?..जाने कांग्रेस का काला सच !


1948 मे हुआ चितपावन ब्राह्मणो का नरसंहार!


1966 मे इंदिरा सरकार ने कराया था साधु-संत और ब्राह्मणो का नर संहार


1989-90 कश्मीरी पंडितो का नरसंहार


बहुत कम लोग जानते हैं कि 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या के बाद देश में एक भयावह नरसंहार हुआ था।

 गाँधी के मुस्लिम तुष्टिकरण के रवैये से नाराज़ होकर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को उन्हें गोली मार दी थी। नाथूराम पर जब मुकदमा चला तो उसे अपनी करनी की सज़ा अदालत ने दी।

 इस हत्याकांड के लिए गोडसे को अम्बाला की एक जेल में फाँसी दे दी गई मगर तत्कालीन सत्तारूढ़ कॉन्ग्रेस पार्टी ने गाँधी की हत्या होते ही नरसंहार की आग को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

गाँधी के भक्तों और पार्टी के अनुयाइयों ने गोडसे की जाति के लोगों को निशाना बनाया।

नाथूराम गोडसे पुणे (आज के महाराष्ट्र) में जन्मे थे और हिन्दू धर्म के चितपावन ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखते थे। 

इसी को मोहरा बना कर तत्कालीन सत्तारूढ़ दल और कॉन्ग्रेस हाईकमान के इशारे पर पूरे राज्य में निवास करने वाले चितपावन ब्राह्मणों का क़त्ल किया गया। 

31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी तक पुणे में ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा का ज़बरदस्त नंगा नाच चला। देखते ही देखते हिंसा की यह चिंगारी जंगल की आग की तरह आग चितपावन ब्राह्मणों की बहुतायत वाले इलाको में फ़ैल गई।

 इनमें सांगली, कोल्हापुर, सातारा शामिल हैं जहाँ सैंकड़ों लोग मारे गए, हज़ारों घरों को आग के हवाले कर दिया गया, स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए ।


आज़ाद भारत का सबसे पहला नरसंहार यही था, जिसमें असंख्य ब्राह्मणों की नृशंस हत्या कर दी गई।

 अहिंसा के पुजारी गाँधी का पार्थिव शरीर जिस वक़्त माटी का अपना अंतिम क़र्ज़ चुकाने के लिए चिता पर रखा जाना था, उस वक़्त पुणे और आसपास के इलाकों में न जाने कितने ब्राह्मणों का नरसंहार हो रहा था।

 यह नरसंहार हिंदुस्तान के इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जिसके घटनाक्रमों का ज़िक्र किसी ने कभी नहीं किया। 

उस ज़माने में भी इस सम्बन्ध में अखबार में खबरें कम ही आईं हालाँकि विदेश के अख़बारों ने इस पर रिपोर्ट छापी थी। 


उस वक्त की घटनाओं का वर्णन करने वाली किताब ‘गांधी एंड गोडसे’ में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कि ब्राह्मणों के खिलाफ उस वक़्त काफी भयंकर माहौल बना दिया गया था.

 चितपावन ब्राह्मण समुदाय के लोगों की हत्याएँ आम हो गई थीं। इस पर भी जब कॉन्ग्रेस का मन नहीं भरा तो वहाँ ब्राह्मणों का सामूहिक बहिष्कार किया गया।


किताब ‘गांधी एंड गोडसे’ किताब के चैप्टर-2 के उप-शीर्षक 2.1 में मॉरिन पैटर्सन के उद्धरणों में इस बात का ज़िक्र किया गया है। 

अपने उद्धरण में मॉरिन ने बताया है कि कैसे गाँधी के अनुयाइयों द्वारा फैलाई जा रही इस हिंसा में ब्राह्मणों के प्रति नफरत फैलाने वाले संगठनों ने भी हवा दी। 


1966 मे इंदिरा सरकार ने कराया था साधु-संत और ब्राह्मणो का नर संहार


"क्या आप जानते हैं कि मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए 7 नवंबर 1966 के दिन इंदिरा गांधी ने गोवध-निषेध हेतु संसद भवन का घेराव करने वाले 5000 साधुओं-संतों को गोलियों से भुनवा दिया था. आज़ाद भारत में इतना बड़ा नृशंस हत्याकांड पहले कभी नहीं हुआ था."


1966 की इस घटना से जुड़े जितने भी पोस्ट हमें मिले, उनका लब्बोलुआब यही था कि साल 1966 में भारत के हिंदू संतों ने गो-हत्या पर प्रतिबंध लगवाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाई थी लेकिन कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया.


कुछ लोगों ने इस घटना की तुलना 1984 के सिख विरोधी दंगों से भी की है और लिखा है कि भारतीय इतिहास में 1984 का ज़िक्र किया जाता है, लेकिन 1966 की बात कोई नहीं करता.


'1966 का गो-हत्या विरोधी आंदोलन' नाम के इस विकीपीडिया पेज पर लिखा है कि "गो-हत्या विरोधी आंदोलन में तीन से सात लाख लोगों ने हिस्सा लिया था. 

जब इन लोगों ने संसद का घेराव किया तो पुलिस ने उनपर फ़ायरिंग कर दी और 375-5,000 लोग मारे गए, वहीं क़रीब दस हज़ार लोग घायल हुए."


1989 -90 कश्मीरी पंडितों का नरसंहार


1989 में कश्मीर में चरमपंथ शुरू होने के बाद कई कश्मीरी पंडितों की चरमपंथियों ने हत्या की जिसके बाद कश्मीर से पंडितों का पलायन शुरू हुआ था.

बता दें कि कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर चले गए थे, उस वक्त हुए नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। कैसे टूटा था कश्मीरी पंडितों पर कहर...

- कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था।

- जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो।

- इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।

300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या

- घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी।

- इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

- उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।

- कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।

- कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार

- डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।

- संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया।

- वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला।

- प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था।

- 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।...

बहरहाल मोदी सरकार के आने के बाद हालात बदले और आमजन मानस सामान्य हुआ। 


देश में दंगों का सिलसिला बँटवारे के पहले से होता आ रहा है मगर आज़ादी के बाद इसे नियंत्रित कर ख़त्म कर देना जिनके जिम्मे था, उन्होंने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ़ किसी विरासत की तरह आगे बढ़ाया। अफसोस कि ये सत्ता की मलाई भी चापते रहे!

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