बालीवुड का इस्लामीकरण एक बड़ी साजिश का हिस्सा रहा;हिन्दुओ को जात पात मे बांटकर राज करो

बालीवुड का इस्लामीकरण एक बड़ी साजिश का हिस्सा रहा;हिन्दुओ को जात पात मे बांटकर राज करो


फिल्मों की कहानियां लिखने का काम भी सलीम खान और जावेद अख्तर जैसे मुस्लिम लेखकों के इर्द-गिर्द ही रहा जिनकी कहानियों में एक भला-ईमानदार मुसलमान, एक पाखंडी ब्राह्मण, एक अत्याचारी – बलात्कारी क्षत्रिय, एक कालाबाजारी वैश्य, एक राष्ट्रद्रोही नेता, एक भ्रष्ट पुलिस अफसर और एक गरीब दलित महिला होना अनिवार्य शर्त है


1980 के दशक से 'अंडर वर्ल्ड डॉन 'दाऊद इब्राहीम के नेतृत्व में नियोजित प्रक्रिया के अन्तर्गत समस्त बॉलीवुड का क्रमिक इस्लामीकरण प्रारम्भ किया गया ,जोकि अब प्रायः पूरा हो चुका है । भारत और भारतीयता को कलंकित करने और अभारतीय अत्याचारी इसलामी शासकों को विभिन्न मनगढ़न्त कहानियों के आधार पर 'कल्पित फिल्में 'बनाकर आदर्श शासक के रूप में प्रस्तुत करके स्वदेशी युवामन को इस्लामी संस्कृति में ढालने का सफल प्रयास किया जाता रहा है । 'जोधा अकबर ' इसी शृंखला की कड़ी रही ।

इसी तरह आदिपुरुष के माध्यम से हमारे रामायण के आदर्शो को मुगलिया रूप मे पेश किया गया ।हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का एक फैशन सा बन गया है. बिना आहत किए इन लोगों की कोई फिल्म नहीं होती है. फिल्म में सभी पात्रों को क्रुर मुगल शासकों का लुक है, यहां तक कि हनुमान जी को भी लम्बी दाढ़ी और बिना मूंछ का मौलाना का लुक दिया गया है. रावण का रोल कर रहे सैफ अली खान अलाउद्दीन खिलजी का लुक में है. लिहाजा फिल्म पर प्रतिबंध लगना चाहिए और जनता को भी उस फिल्म का बायकॉट करना चाहिए.

एक समय था जब मुस्लिम अभिनेता हिंदू नाम रखते थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दर्शकों को उनके मुस्लिम होने का पता चल गया तो उनकी फिल्म देखने को कोई नहीं आएगा।

उदाहरण: ऐसे लोगों में सबसे प्रसिद्ध नाम *युसूफ खान* का है जिनमें दशकों तक हम दिलीप कुमार समझ रहे हैं। हिजबीन अलीबख्श मीना कुमारी बन गई और मुमताज बेगम देहलवी *मधुबाला बनकर हिंदू ह्रदयों पर राज करतीं रहीं। बदरुद्दीन सागरद काजी को हम *जॉनी वाकर समझते हैं और हामिद अली खान विलेन *अजित* बनकर काम करते हैं। हममें से कितने लोग जान पाए कि अपनी समय की मशहूर अभिनेत्री रीना राय का असली नाम *सायरा खान* था।

इन अंडरवर्ड के हरामखोरों की असलियत को पहचानने और हिंदू समाज को संगठित करने से धर्म की रक्षा होगी। आप अपने बच्चों को इस साजिश से अवगत कराएं और धर्म विरोधियो की फिल्मों का बहिष्कार करें।

फिल्मों के संगीतकार और संगीतकार भी मुस्लिम होते हैं तो एक गाना मौला के नाम का बनता है और जो गाना वाला पाकिस्तान से आता है वह जरूरी है।यह नई हिन्दू पीढ़ी का मन से इस्लामीकरण करने की साजिश है।

'अल्ला', 'मौला' और 'अली' जैसे गीतों की भरमार है। उर्दू/हिंदुस्तानी ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है।

सही मायने मे 1930 के दशक में हिंदी सिनेमा के इस्लामीकरण की छाया फिल्म "आलम आरा" से शुरू हुई।

फिल्मों की कहानियां लिखने का काम भी सलीम खान और जावेद अख्तर जैसे मुस्लिम लेखकों के इर्द-गिर्द ही रहा जिनकी कहानियों में एक भला-ईमानदार मुसलमान, एक पाखंडी ब्राह्मण, एक अत्याचारी – बलात्कारी क्षत्रिय, एक कालाबाजारी वैश्य, एक राष्ट्रद्रोही नेता, एक भ्रष्ट पुलिस अफसर और एक गरीब दलित महिला होना अनिवार्य शर्त है।

इन फिल्मों के गीतकार और संगीतकार भी मुस्लिम हों तभी तो एक गाना मौला के नाम का बनेगा और जिसे गाने वाला पाकिस्तान से आना जरूरी है।

continues....

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