CM नायब सैनी ने कहा -SC/ST का आरक्षण दूसरे समुदायों को देना दुखद, ये भाईचारा बिगाड़ने की साजिश है

CM नायब सैनी ने कहा -SC/ST का आरक्षण दूसरे समुदायों को देना दुखद, ये भाईचारा बिगाड़ने की साजिश है


''संविधान के मुताबिक, धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कहीं भी कोई प्रावधान नहीं है.''


हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने धर्म आधारित आरक्षण को लेकर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि SC(अनुसूचित जाति) और ST(अनुसूचित जन जाति ) समुदाय का आरक्षण दूसरों को दे दिया गया है और यह समुदायों के बीच भाईचारे को बिगाड़ने की एक सोची-समझी साजिश है। 

सैनी ने संवाददाताओं से कहा कि, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि SC और ST का आरक्षण धर्म के आधार पर दूसरों को दे दिया गया है।

 कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने ऐसा किया है। यह देश में समुदायों के बीच व्याप्त भाईचारे को बिगाड़ने की एक सोची-समझी साजिश है।" 


उन्होंने कहा कि, "लोगों ने अब कांग्रेस का असली चेहरा देख लिया है और यह पार्टी देश से खत्म हो जाएगी। झूठ पर उन्होंने जो नींव रखी है, वह ढह जाएगी।" 


आपको बता दे कि इसके पूर्व प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर कर्नाटक में मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने का आरोप लगाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 अप्रैल को राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस पर “एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीनकर पिछले दरवाजे से मुसलमानों को देने” का आरोप लगाया, जो उनके इस आरोप से मेल खाता है कि “कांग्रेस लोगों की संपत्ति को मुसलमानों में फिर से बांट देगी”। 

उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस कर्नाटक में पहले ही ऐसा कर चुकी है और कहा कि यह “संविधान की भावना के खिलाफ” है क्योंकि यह धार्मिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है। 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस मेनिफ़ेस्टो को निशाने पर लेते रहे हैं और पार्टी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते रहे हैं.


1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने का निर्णय लिया.


3,743 जातियों को मिलाकर उन्हें ओबीसी में 27 फीसदी आरक्षण दिया गया. उसी मंडल आयोग ने मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को भी ओबीसी में शामिल किया.


1994 में शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफ़ारिशें महाराष्ट्र में लागू की. महाराष्ट्र में ओबीसी को 19 फीसदी आरक्षण दिया गया.

 इसमें भी महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को ओबीसी से आरक्षण मिला हुआ है.


केरल में शिक्षा में 8 फीसदी और नौकरियों में 10 फीसदी सीटें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित हैं.


तमिलनाडु में भी 90 फीसदी मुस्लिम समुदाय आरक्षण की श्रेणी में आता है, जबकि बिहार में मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा और अति पिछड़ा के रूप में वर्गीकृत करके आरक्षण दिया गया था.


आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया.


कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय को अभी आरक्षण मिल रहा है. जनता दल ने ओबीसी के बीच उप-कोटा बनाकर मुस्लिम समुदाय को आरक्षण दिया था.


लेकिन, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बोम्मई ने मुसलमानों के लिए 4 फीसदी आरक्षण रद्द कर दिया. फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सरकार के फैसले पर रोक लगा दी.


केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शुरू से ही एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण की समर्थक  है। 

उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी हमेशा इसके संरक्षक के रूप में भूमिका निभाएगी। आगे जोड़ते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा धर्म के आधार पर आरक्षण का कभी भी समर्थन नहीं करती।


उन्होंने कहा, एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण में किसी एक राजनीतिक दल ने अगर डाका डाला है तो वो कांग्रेस पार्टी ने डाला है। सबसे पहले संयुक्त आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण दिया। उसके कारण ओबीसी का आरक्षण कटा। 

उसके बाद में कर्नाटक में रातों-रात कोई सर्वे किए बगैर और पिछड़ापन तय किए बगैर सारे मुसलमानों को ओबीसी कैटेगरी में डालकर उनके लिए 4 प्रतिशत का कोटा रिजर्व कर दिया। इससे भी पिछड़ा वर्ग का रिजर्वेशन कटा है। 


केंद्र और राज्य स्तर पर मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी आरक्षण दिया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी मुस्लिमों की 36 जातियों को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी आरक्षण दिया जाता है. 


इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 16(4) में व्यवस्था की गई है. इसके मुताबिक, अगर सरकार को लगता है कि नागरिकों का कोई वर्ग पिछड़ा है तो नौकरियों में उनके सही प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण दे सकती है.


रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की ओबीसी लिस्ट में कैटेगरी 1 और 2A में मुसलमानों की 36 जातियों को शामिल किया गया है. 

हालांकि, जिन परिवारों की सालाना कमाई आठ लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें क्रीमी लेयर माना जाता है और उन्हें आरक्षण नहीं मिलता. भले ही फिर वो जाति पिछड़ा वर्ग में ही क्यों न आती हो.


ऐसी कई सरकारी रिपोर्टें हैं, जिनमें कहा गया है कि मुसलमान सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. 2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था मुसलमान समुदाय हिंदू ओबीसी से पिछड़ा हुआ है


2009 में रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की कमेटी ने भी मुस्लिम आरक्षण की वकालत की थी. कमेटी ने अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण देने का सुझाव दिया था. 

इनमें से मुसलमानों के लिए 10 फीसदी और बाकी अल्पसंख्यकों के लिए 5 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी.


केरल में ओबीसी को 30% आरक्षण दिया जाता है. इसके अंदर ही कुछ कोटा मुस्लिमों के लिए भी है. यहां मुसलमानों को नौकरियों में 8% और हायर एजुकेशन में 10% कोटा मिलता है.


तमिलनाडु में भी मुस्लिमों को आरक्षण मिलता है. यहां पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 3.5% आरक्षण मिलता है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस कोटे में मुसलमानों की 95% जातियां शामिल होती हैं.


अभी मुसलमानों को जो आरक्षण दिया जाता है, वो कोटे के अंदर कोटा सिस्टम के जरिए मिलता है. मुसलमानों की जो जातियां एससी, एसटी या फिर ओबीसी में शामिल हैं, उन्हें इस कैटेगरी के अंदर ही आरक्षण मिलता है. मुस्लिमों की जातियों के लिए अलग से कोई कोटा नहीं है.


मसलन, केरल में मुस्लिमों को हायर एजुकेशन में 8% आरक्षण मिलता है, उन्हें ये ओबीसी के ही 30% कोटे से दिया जाता है.

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