चीन में मस्जिद गिराने पर भी क्यों चुप रहे मुस्लिम देश जो भारत का नाम आते ही छाती पीटने लगते है

 चीन में मस्जिद गिराने पर भी क्यों चुप रहे मुस्लिम देश जो भारत का नाम आते ही छाती पीटने लगते है


चीन में मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के हनन के कई आरोप लगते रहे हैं


2018 में ही यूनान में तीन मस्जिदों पर ताला जड़ दिया गया था. सरकार ने कहा था कि इनमें अवैध धार्मिक शिक्षा दी जाती है


इस घटना से जुड़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. चीन के स्थानीय प्रशासन ने यूनान प्रांत के नागू क़स्बे में बनी 13वीं सदी की नाजियिंग मस्जिद के गुंबद और मीनार को ढहाने का फ़ैसला किया था.


नागू की नाजियिंग मस्जिद एक बड़ा लैंडमार्क है. बीते कुछ सालों में इस मस्जिद का विस्तार किया गया है. इस दौरान नई मीनारें जोड़ी गई हैं और एक नया गुंबद भी बनाया गया है.


लेकिन साल 2020 में एक अदालती फ़ैसले में कहा गया कि मस्जिद में किए गए निर्माण अवैध हैं और उन्हें तुरंत हटा दिया जाए.

चीन के यूनान प्रांत की हालिया घटना पूरी दुनिया ने देखी है. इससे पहले चीन के ही शिंजियांग प्रांत में चीन की सरकार का अभियान देखा जा चुका है.


चीन के वीगर मुसलमानों के दमन की ख़बरें बाहर आती रही हैं और उनको जबरन निगरानी कैंपों में भी भेजा जाता रहा है. चीन इन कैंपों को रिएजुकेशन कैंप बताता है.


इन सभी मामलों में दुनिया के मानवाधिकार संगठनों से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देश खुलकर चीन की निंदा कर चुके हैं और करते रहे हैं लेकिन कभी भी मुस्लिम देशों की ओर से इस पर कोई बयान नहीं आया.


पूरी दुनिया में मुसलमान या इस्लाम को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है तो इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी के बयान आते रहे हैं. पैग़ंबर मोहम्मद पर बीजेपी नेता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के बाद मुस्लिम देशों ने इसकी निंदा की थी. बीजेपी को नुपूर शर्मा को पार्टी से हटाना पड़ा था.


वहीं कश्मीर में हिंसा की ख़बरों के दौरान तुर्की जैसे देश भी टिप्पणी करते रहे हैं लेकिन चीन में मुसलमानों के ख़िलाफ़ सरकार की कार्रवाइयों के दौरान ये देश चुप्पी साधे रहते हैं.


लोकतांत्रिक देश चीन में मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा उठाते रहे हैं. वहीं दूसरी ओर ओआईसी के सदस्य देश पाकिस्तान, यूएई, सऊदी अरब, क़तर, ओमान, बहरीन, मिस्र और कुवैत चीन की तारीफ़ करते रहे हैं.


चुप्पी की दूसरी वजह चीन के भारी भरकम क़र्ज़ को हैं. चीन इन मुस्लिम देशों को बिना किसी शर्त के क़र्ज़ दे रहा है. बीआरआई के इन्फ़्रास्ट्रक्चर के लिए चीन अब तक पाकिस्तान को 62 अरब डॉलर तक का क़र्ज़ दे चुका है.


साल 2009 में तुर्की की सरकार ने चीन पर नरसंहार के आरोप लगाए थे लेकिन बाद में उसने भी नरम रवैया अपना लिया क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक चीन पर निर्भर है.


इसके साथ ही चीनी इस्लामिक एसोसिएशन के ज़रिए चीन इस्लाम को लेकर अपना नैरेटिव सेट कर रहा है.


ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी में चाइना पॉलिसी के एक्सपर्ट माइकल क्लार्क मुस्लिम देशों की ख़ामोशी का कारण चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार के डर को मुख्य कारण मानते हैं.


''म्यांमार के ख़िलाफ़ मुस्लिम देश इसलिए बोल लेते हैं क्योंकि वो कमज़ोर देश है. उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना आसान है. म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना ज़्यादा बड़ी है. ऐसे में आलोचना करना भूल जाना अपने हक़ में ज़्यादा होता है.''


मध्य-पू्र्व और उत्तरी अफ़्रीका में चीन 2005 से अब तक 144 अरब डॉलर का निवेश किया है. इसी दौरान मलेशिया और इंडोनेशिया में चीन ने 121.6 अरब डॉलर का निवेश किया. चीन ने सऊदी अरब और इराक़ की सरकारी तेल कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है.


मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की. यहां तक कि बीते साल मार्च में पाकिस्तान में हुई ओआईसी की बैठक में चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी विशेष अतिथि के रूप में पहुंचे थे.

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