यदि भारत को जल्द ही हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया तो हिंदू भी अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा

 यदि भारत को जल्द ही हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया तो हिंदू भी अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा


हमारा मूल चरित्र है “सर्वे भवंतु सुखिनः” हम किसी को भगाने की बात नहीं कर रहे। अपनी संस्कृति को बचाने की बात हो रही है


देश में मदरसों की संख्या तेजी के साथ बढ़ रही है। वहीँ हमारी संस्कृति को बचाने का काम करने वाले गुरुकुल को खत्म करने का काम किया गया है




*वी डी पांडेय "सिंघम"

 

हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की मांग अपने देश और अपने सनातन संस्कृति को बचाने के लिए की जा रही है। भारत के सनातनी लोग सभी को सुखी रखने के लिए खुद को मृत्यु के घाट पर नहीं पहुंचा सकते। हमारा मूल चरित्र है “सर्वे भवंतु सुखिनः” हम किसी को भगाने की बात नहीं कर रहे। अपनी संस्कृति को बचाने की बात हो रही है। जहां पर मुस्लिम बहुसंख्य हैं वहां पर दुनिया देख रही है कि अल्पसंख्यकों की क्या हालत है। अगर देश के वर्तमान हालात ऐसे ही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी 15-20 साल बाद यही स्थिति होगी।’


हमारा सनातनी धर्म कहता है सर्वे भवंतु सुखिन:। हम सभी को सुख रख रहे हैं लेकिन इसके चलते हम अपने आप को मौत के मुंह में तो नहीं धकेल सकते। अपने बच्चों की इज्जत से खिलवाड़ नहीं कर सकते। आगामी सालों में जो परेशानियां हमारे बच्चों पर आएगी और भारत की आजादी को भी हम बरकरार नहीं रख सके तो क्या इसे हमारी मानवता कहा जाएगा।


सनातन धर्म के बच्चे केवल सनातनी धर्म के परिवारों में ही विवाह करें। इस तरह का सरकार कानून भी बनाए। इसको लेकर उनका कहना था कि आजकल क्या हो रहा है सभी देख रहे हैं हमारे धर्म की बच्चियां दूसरी विशेष धर्म के लोगों के साथ शादी कर रही हैं और शादी के बाद उनकी क्या दुर्दशा होती है किसी से छिपी नहीं है। सबसे पहले उस बेटी का धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है उसके साथ मारपीट की जाती है, अत्याचार किया जाता है। कई उदाहरण आए दिन हम को मिलते हैं। इसीलिए सनातन धर्म के बच्चे सनातन धर्म परिवार में ही शादी विवाह करें ऐसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है।


देश में मदरसों की संख्या तेजी के साथ बढ़ रही है। वहीँ हमारी संस्कृति को बचाने का काम करने वाले गुरुकुल को खत्म करने का काम किया गया है। भारत सरकार को चाहिए कि देश की संस्कृति को बचाने के लिए गुरुकुल की स्थापना करवाएं।


आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने एक से अधिक बार यह स्पष्ट किया है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है, इसकी पहचान हिंदुत्व है और देश में रहने वाला हर हिंदू है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। विशेष रूप से, हिंदुत्व इस देश की जीवन रेखा है- यदि इतिहास कुछ भी हो जाए


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर यह बात मढ़ दी गयी है कि वह और उनका दल भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है। यदि ऐसा है, तो मैं पूछता हूँ कि इसमें ग़लत क्या है?


भारतवर्ष ही निस्संदेह सनातन हिंदुत्व की मूल जन्मभूमि है। दुनिया के 96% हिंदू यहीं बसते हैं, जबकि इस्लाम की जन्म भूमि अरबियात में सिर्फ़ 1.6% मुसलमान ही रहते हैं।


ईसाइयत और इस्लाम के बाद हिंदुत्त्व ही पूरी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। लेकिन इन दोनो धर्मों की तरह हिंदू लोग पूरे विश्व के मानचित्र पर छिटके हुए नहीं है। पूरी हिंदू आबादी का 97% सिर्फ़ तीन देशों में ही आबाद है- भारत, मॉरीशस और नेपाल।


ऊल्लेख्य है कि पूरी दुनिया में मुस्लिम वर्चस्व वाले 53 देश हैं, जिनमें से 27 का राजधर्म इस्लाम है। सौ से अधिक ईसाई वर्चस्व वाले देशों में से 15 का राजधर्म ईसाइयत है। ईसाई देशों में शामिल हैं- इंग्लैंड, ग्रीस, आइसलैंड, नॉर्वे, हंग्री, डेनमार्क। और बौद्ध धर्म वाले देश भी छह हैं। इज़रॉयल ज़ेविश (यहूदी सम्बन्धित) राज्य है। लेकिन सर्वाधिक ध्यातव्य है कि इन सभी धर्म वाले देशों से हमारे बाम-उदारपंथ (लेफ़्ट लिबरल बिरादरी) को कोई समस्या नहीं होती। किंतु भारतवर्ष के मामले में उनका तर्काधार बिलकुल अलग है, जो मेरी समझ में नहीं आता! आख़िर, इस देश का धर्म हिंदुत्त्व क्यों नहीं हो सकता? धर्मनिरपेक्ष भारत में हिंदुत्त्व को लेकर हमेशा उनकी नज़रों की तलवारें तनी क्यों रहती हैं!

हिंदुओं के साथ लम्बे समय से रहते हुए पारसी, सिक्ख, मुस्लिम, जैन आदि सभी अल्पसंख्यक समुदायों में हिंदुओं के प्रति अब तक यही विश्वास फला-फूला है कि अन्य धर्मों के प्रति ये क़तई अनुदार नहीं होते। इसका प्रमाण यह भी है कि किसी भी धर्म के धार्मिक स्थलों पर हिंदू सहज ही उनकी पूजा-अर्चना करते मिल जायेंगे।


इस्लाम की सबसे आश्चर्यजनक बात है कि वे सारी दुनिया में सिर्फ़ इस्लाम चाहते हैं। वे मानते हैं कि इस्लाम के अलावा कोई अच्छा धर्म है ही नहीं।


कौन सा ऐसा धर्मनिरपेक्ष देश होगा, जो किसी एक धर्म-समुदाय की धार्मिक यात्राओं के लिए ऐसी रियायत देगा? इस रियायत से वर्ष 2008 में प्रति मुस्लिम यात्री पर सिर्फ़ हवाई-यात्रा का औसत खर्च बैठा – लगभग एक हजार अमेरिकी डॉलर।

इधर जब भारत सरकार धार्मिक पर्यटन में अपने (मुस्लिम) नागरिकों को सहयोग कर रही थी, उधर साउदी अरबिया में मूर्त्ति-पूजा के नाम पर सम्मान्य हिंदू प्रतीकों की भर्त्सना हो रही थी और वहाँ की सरकार ‘वहाबी आंदोलन’ के अतिवाद को पूरे विश्व भर में फैलाने में लगी थी, जिसके तहत हिंदुओं को अपने मंदिर बनाने की इजाज़त नहीं थी और भारतीय करदाताओं के पैसों से मिली हज-यात्रा की छूटों के बल सऊदी अर्थतंत्र लहलहा रहा था।


सही अर्थों में एक धर्मनिरपेक्ष देश के सभी नागरिक, धर्म या जाति की परवाह किये बिना, समान क़ानून से संचालित होते हैं, जबकि भारत में आलम यह है कि भिन्न-भिन्न जाति-धर्म व विश्वास के लोगों के लिए अलग-अलग क़ानून काम करते हैं। भारत में मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है, वहाँ की दान-राशि पर सरकार कर लेती है, जबकि गिरजाघर व मस्जिदें स्वायत्त हैं। उनकी दान-राशि उनकी होती है। हज-यात्रा के लिए छूट मिलती है, लेकिन अमरनाथ-यात्रा या कुम्भ-स्नान के लिए कोई छूट नहीं मिलती!


आज भी भारत यदि धर्मनिरपेक्ष देश है, तो संवैधानिक संरचना एवं 1976 के संशोधनों तथा क़ानून व क़ानून के बनाने वालों के चलते नहीं, वरन इसलिए कि भारत में बहुसंख्यक लोग हिंदू हैं। जिस दिन हिंदू आबादी बहुसंख्यक नहीं रहेगी, यह देश एक दिन भी धर्म-निरपेक्ष नहीं रह पायेगा, इसकी गारंटी कोई भी ले-दे सकता है। यह हिंदुत्त्व की ही खूबी है कि धर्मनिरपेक्षता इसमें बखूबी सुरक्षित है। और यह किसी काग़ज़ के टुकड़े के बल पर नहीं है, बल्कि हज़ारों सालों से हिंदुत्व की सहनशीलता के अभ्यास व आदत के चलते है।


यदि भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र होता है, तो इससे बेहतर कुछ न होगा। तब समान नागरिक संहिता होगी और किसी को भी कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं मिलेगा- हिंदुओं को भी नहीं! किसी भी देश के विकास का सदा ही मुख्य कारक रहा है- क़ानून का नियम। जर्मनी, जापान, अमेरिका आदि सभी प्रगत देश इसी पर टिके रहे हैं। तब धर्मांतरण (किसी का किसी में) प्रतिबंधित होगा, जो धार्मिक टकराहटों का मूल कारण होता है। फिर कोई तबलीगी जमात (बीस-तीस लोगों का समूह, जो घूम-घूम कर इस्लाम का प्रचार करता है) बिलकुल न रहेगी। एक बार धर्मांतरण ख़त्म हुआ, तो हर आदमी अपने मनचाहे धर्म को चुन सकता है, उसके साथ रह सकता है। फिर वह चाहे, तो ‘किसी धर्म में न रहना’ याने नास्तिक होना ही चुन ले।


1000 शताब्दी के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप पर मुस्लिम आक्रमण शुरू हुए और लगभग सात सौ से अधिक सालों (1739 ईस्वी) तक चलते रहे। इस दौरान लगभग सौ मिलियन हिंदुओं का विनाश हुआ होगा। विश्व-इतिहास में इससे बड़ी प्रलय शायद दूसरी न हुई होगी। और ग़ज़ब यह है कि न ही तब के हिंदू-समुदाय ने और न बाद में उनके वंशजों ने इसका कोई प्रतिशोध लिया!


लेकिन अब समय आ गया है कि अपनी शांति-सहिष्णुता की विरासत के साथ और उसी के बल हिंदुओं को एकजुट हो जाना चाहिए। और जैसा कि इतने विवेचन से स्पष्ट हो चुका है कि ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा एवं प्रवृत्ति में ही धर्मनिरपेक्षता के मूल्य समाहित हैं.

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