कर्नाटक (Karnataka)मे कांग्रेस की नही तालिबानी(Taliban) हुकूमत (government)है;अनाथालय का सच दिखाने पर NCPCR अध्यक्ष पर करा दिया FIR

कर्नाटक (Karnataka)मे कांग्रेस की नही तालिबानी(Taliban) हुकूमत (government)है;अनाथालय का सच दिखाने पर NCPCR अध्यक्ष पर करा दिया FIR


दारुल उलूम अनाथालय का सच दिखाने के लिए NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो पर FIR दर्ज


प्रियांक ने बेंगलुरू में दारुल उलूम अनाथलय का सच सामने लाया था। यहां बच्चों को तालिबानी तरीके से रखा जा रहा था।

सरकार का यह एक्शन, कानूनगो के बेंगलुरु स्थित एक अनाथालय के दौरे के बाद आया है, जहां उन्होंने कथित तौर पर बच्चों की रहने की स्थिति की तुलना तालिबानी जीवनशैली से की थी।

दरअसल, कानूनगो ने अनाथालय के एक औचक निरीक्षण के दौरान कई अनियमितताओं की सूचना दी, जिसमें छोटे-छोटे कमरों में 200 बच्चों को ठूंसकर भरा जाना भी शामिल था। 


FIR पर प्रतिक्रिया देते हुए NCPCR ने एक बयान में कहा है कि सरकार की कार्रवाइयों का उद्देश्य आयोग की आवाज को दबाना है, जो वंचित बच्चों के अधिकारों की वकालत करता है। 

कानूनगो ने अनाथालय में बच्चों की खराब जीवन स्थितियों, शिक्षा की कमी और तालिबान जैसी मध्ययुगीन जीवनशैली पर प्रकाश डाला। 

NCPCR के निरिक्षण के दौरान, यह पता चला था कि अनाथालय में बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता था, उन्हें केवल पुरानी इस्लामी शिक्षा ही दी जाती थी। 

यहाँ तक कि बच्चों के रहने की स्थितियाँ भी घटिया थी, बच्चे छोटे-छोटे कमरों, गलियारों और मस्जिद हॉलों में ठूंस-ठूंसकर रहते थे और पूरे दिन इस्लामी धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते थे। NCPCR ने बताया था कि, ''बच्चों के लिए कोई खेल का सामान नहीं है, बच्चे TV भी नहीं देखते, छोटे-छोटे बच्चे बेहद मासूम हैं और इतने डरे हुए हैं कि मौलवी को आता देख सारे के सारे स्थिर हो कर आँख बंद कर लेते हैं, सवेरे 3:30 पर जाग कर मदरसा की पढ़ाई में लग जाते हैं और दोपहर में सोते हैं, शाम से रात तक फिर तालीम होती है, दिन में नमाज़ के लिए छोटे ब्रेक होते हैं।

 खाने, आराम करने, मनोरंजन इत्यादि के लिए कोई और जगह नहीं है, सबको मस्जिद में ही रहना होता है। जबकि पता चला है कि करोड़ों की वफ़्फ़ की सम्पत्ति वाले इस यतीम खाने की बिल्डिंग अलग है जिसमें स्कूल चल रहा है पर उसमें इन बच्चों को जाने की इजाज़त नहीं है।'' इसे बाल आयोग ने बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए कहा था कि, भारतीय संविधान में बच्चों के लिए ये जीवन नहीं लिखा है। साथ ही ये अनाथालय भी अवैध और गैर पंजीकृत बताया गया था। 


प्रियांक कानूनगो ने वारंट की निंदा करते हुए दावा किया कि यह गरीब बच्चों के अधिकारों के लिए आयोग की वकालत को चुप कराने का एक प्रयास है। 

उन्होंने अवैध अनाथालयों के खिलाफ कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि सरकार की कार्रवाइयां उनके प्रयासों को नहीं रोक सकेंगी। 

यह स्थिति बाल अधिकारों की वकालत और सरकारी कार्रवाइयों के बीच तनाव को उजागर करती है, कानूनगो को एक अनाथालय में खराब स्थितियों को उजागर करने के लिए कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ रहा है।

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