केशव प्रसाद मौर्य के सौर्य को नकार कौशाबी की जनता ने किया सपा का समर्थन:बीजेपी का सूपड़ा हुआ साफ !

केशव प्रसाद मौर्य के सौर्य को नकार कौशाबी की जनता ने किया सपा का समर्थन:बीजेपी का सूपड़ा हुआ साफ !


डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के गृह जनपद कौशाम्बी में भाजपा की बहुत बुरी दुर्गति हुई है।

कौशाम्बी की तीनों विधानसभा सीटों पर भी सपा का कब्जा है।

भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार के सांसद विनोद सोनकर को मैदान में उतारा था। जबकि, सपा ने पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को टिकट दिया था।

पांचवीं बार मंझनपुर विधानसभा क्षेत्र से ही सपा के टिकट पर विधायक चुने गए इंद्रजीत वर्तमान में सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। 

सियासी जानकारों का कहना है कि नव निर्वाचित सांसद पुष्पेंद्र को चुनाव में पिता की इसी सियासी विरासत का फायदा मिला है।


प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जनपद के ही सिराथू क्षेत्र के रहने वाले है .लेकिन केशव प्रसाद मौर्य न खुद अपनी सीट बचा पाये थे और न दो अन्य विधान सभा की रही सही कसर लोक सभा चुनाव मे पूरी हो गयी ।


केशव प्रसाद मौर्य अपनी जाति के सिरमौर नेता माने जाते रहे है लेकिन यूपी की विधान सभा चुनाव सहित लोक सभा चुनाव मे भी वह अपना सौर्य दिखाने मे विफल रहे ।

केशव मौर्य को उनकी जाति के लोगो ने इग्नोर कर बीजेपी के बजाय सपा का समर्थन किया यही नही कौशाबी के साथ ही प्रयागराज के फूलपुर लोक सभा  मे भी मौर्य मतदाता सपा का ही समर्थन करता नजर आया।

बहर हाल यहा शहर  उत्तरी की जनता ने प्रवीण पटेल को जीत दिलाने मे सफल रही ।


प्रदेश भर के मौर्य का सिरमौर बनने वाले पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता का जातीय समीकरण कमाल नही दिखा सका और कमल मुरझा गया ।

केशव भले ही खुद को मौर्य जाति का सौर्य मानते हो लेकिन उनकी खुद की सीट सहित सभी विधान सभा चुनाव मे बुरी तरह पराजित होना यह दर्शाता है कि केशव को कौशाम्बी की जनता ही नही बल्कि स्वजातीय लोग भी अब तवज्जो नही दे रहे है ।

भारतीय जनता पार्टी ने केशव के लगातार विफल होने के बावजूद यूपी डिप्टी सीएम का पद दिया जिससे मौर्य जाति के मतदाता को साधा जा सके लेकिन यह गुणा गणित भी संगठन का फेल ही साबित हुआ। 


कौशाबी की जनता का मानना है कि ये सभी विधायक और सांसद मोदी योगी के नाम पर जीत कर शासन सत्ता का सुख भोगते रहे। लेकिन इनको जनता की फिक्र तनिक भी न थी ।

जिसके परिणामस्वरूप एक एक कर सभी विधान सभा और लोक सभा की सीटे बीजेपी के खाते से छिटक कर सपा के खेमे मे चली गयी ।

डिप्टी सीएम केशव रहे हो या यहा के विधायक और सांसद इनका जनता के दुख सुख से सरोकार न होना ही हार का सबसे बड़ा कारण रहा है ।

अब देखना यह है कि बीजेपी केशव मौर्य के नाम और काम को कैसे उपयोग मे लाती है यह उसका अपना संगठन सुनिश्चित करेगा ।


2018 में हाथी से उतरकर साइकिल की सवारी करने वाले इंद्रजीत को अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा मानते हुए सपा ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाने के साथ ही वर्ष 2019 में कौशाम्बी लोकसभा से उम्मीदवार बनाया था।

 हालांकि, मोदी लहर में वह भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद वर्ष 2022 के चुनाव में इंद्रजीत ने खुद को साबित करते हुए कौशाम्बी जिले भाजपा को क्लीन स्वीप कर दिया था।

पहली दफा वर्ष 1997 में वह मंझनपुर विधानसभा से विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह 2002, 2007 और 2012 में लगातार चार चार बसपा से ही विधायक निर्वाचित हुए।

 तत्कालीन मायावती सरकार के किचेन कैबिनेट में शामिल इंद्रजीत सरोज दो बार सूबे के कबीना मंत्री भी रह चुके हैं।


कमल के निशान पर चुनाव लड़कर नगर पालिका परिषद मंझनपुर में वीरेंद्र फौजी, भरवारी में कविता पासी, नगर पंचायत सिराथू में भोला यादव और अजुहा में शांती कुशवाहा अध्यक्ष बनीं।

 नगर पालिका परिषद मंझनपुर में नौ वार्डों में भाजपा के सभासद हैं। इसी तरह आठ में से पांच ब्लॉक प्रमुख भी भाजपाई हैं। 

लोकसभा के इस चुनाव में भाजपा से जुड़े इन सभी जनप्रतिनिधियों ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। बावजूद इसके पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में वोटरों को लाने में नाकाम रहे।


प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कौशाम्बी जनपद के ही सिराथू क्षेत्र के रहने वाले हैं।यही से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की काफी संघर्ष के बाद वह खुद को मौर्य जाति का बड़े नेता के तौर पर स्थापित करने मे सफल भी रहे ।

लेकिन कहते कि प्रभुता पाने के बाद मद तो आता ही है और वही हुआ जिसका डर था।केशव के गृह जनपद मे बीजेपी का सूपड़ा साफ होना अच्छा संकेत नही है ।

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