'भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है',..जब एक आवाज से सहम गया था देश

'भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है',..जब एक आवाज से सहम गया था देश


इंदिरा गांधी सरकार ने छीन लिया था देशवासियो से जीने का अधिकार


जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नाडीस सरीखे बड़े नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था।


सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी।


इस दिन को यादकर हर भारतीय का सिर शर्म से झुक जाता है। 1975 में आज ही के दिन से 21 महीने के लिए इमरजेंसी लागू हो गई थी। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का यह समय तत्‍कालीन इंदिरा गांधी सरकार की मनमानियों का दौर था। उस वक्‍त सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबा दिया गया था।


25 जून 1975। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन। करीब साढ़े चार दशक पहले आज के ही दिन देश के लोगों ने रेडियो पर एक ऐलान सुना। पूरे मुल्क में खबर फैल गई। भारत में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है।


25 जून और 26 जून की दरमियानी रात में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में आपातकाल लागू हो गया था। अगली सुबह पूरे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना था। वह बोली थीं- 'भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।'


25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नाडीस सरीखे बड़े नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था। जेलों में जगह तक नहीं बची थी।


आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया। उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी।


1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को अभूतपूर्व जीत दिलाई थी। वह खुद भी बड़े मार्जिन से जीती थीं। खुद इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इंदिरा गांधी के सामने रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है। मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया। इस फैसले से आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाने का फैसला किया।


25 जून 1975... यह वह दिन है जिसे देश कभी नहीं भूलेगा। उसकी वजह यह है कि इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में इमरजेंसी लागू करने की घोषणा की थी। इमरजेंसी के दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया और इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया गया।


12 जून 1975... यही वह तारीख है, जिसने देश में इमरजेंसी लगाने की बुनियाद रखी। दरअसल, इसी दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए गलत तौर-तरीके अपनाने का दोषी पाया और उनका चुनाव रद्द कर दिया।


इंदिरा के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सबसे अधिक काली अवधि' कहा था।


इमरजेंसी के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस पर बैन लगा दिया गया। आरएसएस को विपक्षी नेताओं का करीबी माना गया था है और यह आशंका भी जताई गई थी कि यह सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर सकती है। पुलिस ने आरएसएस के हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया।


राजनारायण ने 1971 में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से इंदिरा गांधी के हाथों शिकस्त झेलने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। शीर्ष अदालत ने 24 जून 1975 को हाईकोर्ट के आदेश को तो बरकरार रखा, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की इजाजत दे दी।


इमरजेंसी लागू करने के करीब दो साल बाद इंदिरा गांधी ने अपने पक्ष में विरोध की लहर तेज होती देख लोकसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। हालांकि, यह फैसला उनकी पार्टी और उनके लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा को रायबरेली संसदीय क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा।


जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। वहीं, संसद में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 50 से घटकर 153 हो गई। भारतीय राजनीति का यह महत्वपूर्ण समय था, क्योंकि 30 साल बाद देश में कोई गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।

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