जयंती पर कोटि कोटि नमन:आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे

 जयंती पर कोटि कोटि नमन:आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे



आर्यभट्ट ने शून्य, ज्या-कोज्या, साधारण समीकरणों के हल, बीजगणित के सूत्र, त्रिकोणमिति व इसके फलन, ग्रहों की गति, नक्षत्र, ग्रहण, दिन रात होने में लगा समय, सप्ताह के 7 दिन, 1 वर्ष होने में लगा समय, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन करना, इत्यादि की खोज की थी


आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है।

आर्यभट्ट भारत के पहले महान गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे। उनका जन्म आज से लगभग 1600 वर्ष पहले हुआ था। उस समय में भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था। तब राजाओं का शासन हुआ करता था। आर्यभट्ट ने अपनी मेहनत से गणित और खगोल विज्ञान के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। 


वे राजाओं के शासन के उथल-पुथल, युद्ध, व अनिश्चित शासन से प्रभावित नहीं हुए तथा अपने कार्य को जारी रखा। प्राचीन भारत में उनके जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं हुआ था।आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उन्होंने आर्यभटीय किताब की रचना की थी जिसमें उन्होंने बताया है कि वे पाटलिपुत्र के निवासी हैं।ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई थी तथा वे वहीं पर रहते थे। बाद में वे पाटलिपुत्र के एक शिक्षण संस्थान के मुख्य अध्यक्ष भी रहे थे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के भी अध्यक्ष रहे थे।


उन्होंने तारेगना (वर्तमान पटना के पास) के एक मंदिर में वेधशाला भी स्थापित की जिससे वह ग्रहों व खगोलीय नक्षत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे।आर्यभट्ट ने आर्यभटीय  ग्रंथ की रचना की जिसमें उनके खोज कार्यों का वर्णन किया गया है। हालांकि, इस ग्रंथ का नाम उनके शिष्यों व अन्य लोगों ने आर्यभटीय रखा था।ग्रंथ को छंद/पद्य तरीके में लिखा गया है जो इसे पढ़ने में थोड़ा-सा कठिन बनाता है। इसमें कुल 108 छंद/पद्य हैं तथा 13 अन्य परिचयात्मक छंद है।आर्यभट्ट ने गति की सापेक्षता के बारे में बताया था कि एक चलती हुई नाव में बैठे हुए व्यक्ति को पेड़ पौधे व स्थिर चीजें चलती हुई दिखाई देती है, उसी तरह स्थिर तारे भी पृथ्वी के लोगों को पश्चिम की ओर चलते हुए दिखाई देते हैं।

शून्य की उत्पत्ति

आर्यभट्ट ने संख्याओं को आगे बढ़ाने तथा एक पूर्ण गणना करने के लिए दशमलव का उपयोग किया। इसी दशमलव को उन्होंने शून्य कहा। 

अन्य संख्याओं के बराबर आकार देने के लिए उन्होंने इसकी आकृति बदलकर एक वृत्त की तरह बना दिया। वर्तमान समय का शून्य आर्यभट्ट की ही देन है जो उनके समय से ही चलता हुआ आ रहा है।

पाई का मान

आर्यभट्ट ने आर्यभटीय के दूसरे अध्याय के दसवें छंद में पाई का मान बताया है। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले एक वृत्त के व्यास का निश्चित मान रखा। यह व्यास उन्होंने 20,000 रखा था। 


इसमें बताया गया है कि 100 में चार जोड़कर उसे 8 से गुणा कर दीजिए तथा प्राप्त हुए परिणाम में एक बार फिर 62,000 जोड़ दीजिए। जो अंतिम परिणाम आया है उसे वृत्त के व्यास से विभाजित कर दीजिए। 

आपके पास प्राप्त हुआ परिणाम ही पाई का मान है और यह मान 3.1416 आता है जो वर्तमान समय की पाई के मान के 3 दशमलव तक सत्य है।

उन्होंने इसकी गणना भी अपने ग्रंथ में करके दिखाई है।

आर्यभट्ट ने चरों वाली साधारण समीकरणों का हल निकालने के लिए कुटुक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह सिद्धांत बाद में मानक सिद्धांत बन गया।


आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम त्रिकोणमिति के ज्या (sine) तथा कोज्या (cosine) फलनों की रचना की थी। जब उनके ग्रंथ का अरब भाषा में अनुवाद किया गया था तब अनुवादक ने इन शब्दों को जैया (Jaiya) तथा कौज्या (Kojaiya) बदल दिया। और जब उन्हीं अरब किताबों को लेटिन भाषा में अनुवादित किया गया तो इनको स्थानिक शब्दों साइन व कोसाइन से प्रदर्शित किया। जिसे पता चलता है कि साइन व कोसाइन की रचना आर्यभट्ट ने ही की थी।

आर्यभट्ट ने यह परिकल्पना की कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और वह हमेशा ही इसी बात पर अड़े रहे। उन्होंने समझाया कि जिस तरह एक चलती हुई नाव में बैठे हुए व्यक्ति को लगता है कि पेड़ पौधे व स्थिर चीजें उसकी गति की विपरीत दिशा यानी किनारे की ओर जा रही हैं उसी तरह पृथ्वी के लोगों को तारे चलते हुए दिखाई देते हैं। 

उन्होंने बताया कि सूर्य, चंद्रमा सभी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। यह दो ग्रहचक्कर में गति करते हैं जिसे मंद और तेज कहा गया था। उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी से दूरी के आधार पर व्यवस्थित किया, जिसका क्रम यह है – चंद्रमा, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शनि व तारे।


सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण

सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने ही सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के बारे में बताया था। 


जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ने लगती है जिसे सूर्यग्रहण कहते हैं।


इसी तरह जब सूर्य व चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने लगती है जिसे चंद्रग्रहण कहते हैं। 


उन्होंने इन सिद्धांतों को राहु-केतु की मदद से समझाया। उन्होंने पृथ्वी के आकार की गणना करके ग्रहण के वक्त बनी छाया का मापन भी किया जिससे पता चलता है कि वह बहुत ही बुद्धिमान इंसान थे।


दिन-रात व वर्ष का होना 

आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है जिसमें उसे 23 घंटे 56 मिनट 4.1 सेकंड का समय लगता है। वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार यह समय 23 घंटे 56 मिनट 4.09 एक सेकंड है जिससे पता चलता है कि आर्यभट्ट की गणना में मात्र 0.01 सेकेंड का अंतर था।


भारत सरकार ने आर्यभट्ट की प्रतिष्ठा में अपनी पहली सेटेलाइट का नाम आर्यभट्ट रखा था जो 1975 में लांच की गई थी।  उनकी प्रतिष्ठा में बिहार सरकार ने आर्यभट्टा नॉलेज यूनिवर्सिटी की भी स्थापना की जो वहीं पटना से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। चांद की पूर्वी दिशा की ओर उपस्थित गड्डों को आर्यभट्ट का नाम दिया गया।

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