UCC पर उबाल:एक देश एक कानून जरूरी :देश संविधान से चलेगा सरिया से नही !

 UCC पर उबाल:एक देश एक कानून जरूरी :देश संविधान से चलेगा सरिया से नही !


जब गोवा मे UCC हो सकता है तब अन्य राज्यो मे दिक्कत क्यो?



देश में जब से समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की गूंज सुनी जा रही है, तब से सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समुदाय के कथित ठेकेदार या जिम्मेदार, जो भी कहें, उनकी ओर से सामने आ रहा है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी की चर्चा भर की तो एक बार फिर देश में तूफान मच गया.


इसी चर्चा और तूफान के बीच जानना जरूरी है कि आखिर शरीयत में मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति में क्या और किस तरह के अधिकार दिए गए हैं.

 समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code, यूनिफॉर्म सिविल कोड; UCC) एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है।


समान नागरिक संहिता को लेकन मंगलवार को PM Narendra Modi ने एक बयान दिया था, जिससे इस मुद्दे पर देशभर में बहस छिड़ गई. पीएम ने UCC का विरोध करने वालों से सवाल किया था कि आखिर दोहरी व्‍यवस्‍था से देश कैसे चल सकता है. पीएम मोदी ने ये भी कहा था कि संविधान में भी सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का जिक्र किया गया है. ऐसे में बीजेपी ने तय किया है कि वो तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के बजाए संतुष्टिकरण के रास्ते पर चलेगी. पीएम मोदी के इस बयान के बाद विपक्षी दलों में हलचल मच गई है और UCC का मुद्दा एक बार फिर से गर्म हो गया है.


समान नागरिक कानून का जिक्र पहली बार 1835 में ब्रिटिश काल में किया गया था. उस समय ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. लेकिन फिर भी भारत में अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका.



  *अभी मात्र "गोवा" में ही लागू है UCC*


भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्‍य है जहां UCC लागू है. संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. इसे गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है. वहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समेत सभी धर्म और जातियों के लिए एक ही फैमिली लॉ है. इस कानून के तहत गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं होगी. शादी का रजिस्‍ट्रेशन होने के बाद तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही हो सकता है. संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है. इसके अलावा पैरेंट्स को कम से कम आधी संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को बनाना होगा, जिसमें बेटियां भी शामिल हैं. गोवा में मुस्लिमों को 4 शादियां करने का अधिकार नहीं है।


*समान नागरिक संहिता का पालन कई देशों में होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड, आदि शामिल हैं।*

 इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं। 


दरअसल, दुनिया के किसी भी देश में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून नहीं है। लेकिन भारत में अलग-अलग पंथों के मैरिज एक्ट हैं। इस वजह से विवाह, जनसंख्‍या समेत कई तरह का सामाजिक ताना-बाना भी बि‍गडा हुआ है। इसीलिए देश के कानून में एक ऐसे यूनिफॉर्म तरीके की जरूरत है जो सभी धर्म, जाति‍, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्‍टम में लेकर आए। इसके साथ ही जब तक देश के संविधान में यह सुविधा या सुधार नहीं होगा, भारत के पंथ निरपेक्ष होने का अर्थ भी स्‍पष्‍ट तौर पर नजर नहीं आएगा।


शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।


UCC के लागू होने से महिलाओं की स्थिति सुधरेगी। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे।


*UCC पर Supreme Court ने कब-कब क्‍या कहा?*

Uniform civil code को लेकर Supreme Court भी कई बार अपनी टि‍प्‍पणी कर चुका है। Supreme Court ने इसके लिए अलग-अलग प्रकरणों का हवाला दिया और इस बारे में अपने तर्क रखे थे।


*शाहबानो प्रकरण 1985 मे SC की अहम टिप्पणी*

‘यह बहुत दुख का विषय है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 एक मृत अक्षर बनकर रह गया है। यह प्रावधान करता है कि सरकार सभी नागरिकों के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ बनाए, लेकिन इसे बनाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने का कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिला है।


*जॉन बलवत्तम केस 2003सुप्रीम कोर्ट* ने कहा, ‘यह दुख की बात है कि अनुच्छेद 44 को आज तक लागू नहीं किया गया। संसद को अभी भी देश में एक समान नागरिक संहिता लागू के लिए कदम उठाना है’।


*एक्‍ट‍िविस्‍ट अश्‍विनी उपाध्‍याय* ने यूसीसी लागू कराए जाने को लेकर Supreme Court में याचिका दायर कर रखी है। उनका कहना है कि देश एक संविधान से चलता है। एक ऐसा विधान जो सभी धर्मों और संप्रदायों पर एक समान लागू हो। किसी भी पंथ निरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होते हैं। भारत में Uniform civil code अनिवार्य तौर पर होना चाहिए।


*सरला मुदगल केस 1995*

‘संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत व्यक्त की गई संविधान निर्माताओं की इच्छा को पूरा करने में सरकार और कितना समय लेगी? उत्तराधिकार और विवाह को संचालित करने वाले परंपरागत हिंदू कानून को बहुत पहले ही 1955-56 में संहिताकरण करके अलविदा कर दिया गया है। देश में समान नागरिक संहिता को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने का कोई औचित्य नहीं है। कुछ प्रथाएं मानवाधिकार एवं गरिमा का अतिक्रमण करती हैं। धर्म के नाम पर मानवाधिकारों का गला घोटना निर्दयता है, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को मजबूत करने के लिए नितांत आवश्यक है।’


UCC का विरोध करने वालों का मत है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून थोपने जैसा है। जबकि इसका उदेश्‍य साफतौर पर सभी को समान नजर से देखना और न्‍याय करना है। कई मुस्‍लिम धर्म गुरुओं और विशेषज्ञ Uniform civil code को लागू करने के पक्ष में नहीं है। उनका कहना है कि हर धर्म की अपनी मान्‍यताएं और आस्‍थाएं होती हैं। ऐसे में उन्‍हें नजरअंदाज नहीं किया जा सक‍ता।


करीब 73 साल पहले नवंबर के इन्‍हीं दिनों में दिल्‍ली के संसद भवन में यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) को लेकर विमर्श किया जा रहा था। इस मुद्दे के केंद्र में था कि यूसीसी को संविधान में शामिल किया जाए या नहीं। यह 23 नवंबर 1948 का दिन था। लेकिन अंतत: इस पर कोई नतीजा सामने नहीं आ सका।


इस बात को आज 73 साल गुजर गए। इसे लेकर कुछ नहीं हो सका। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है तो देश के तकरीबन हर शहर में चाय के ठेलों से लेकर कॉफी हाउस तक यह चर्चा रहती है कि सरकार UCC लागू करेगी, क्‍योंकि ‘एक देश, एक कानून’ का विचार आज आमतौर पर हर आदमी के जेहन में है। नागरिकों को उम्‍मीद इसलिए भी है कि मोदी सरकार अपने अतीत में किए गए सख्‍त फैसलों के लिए जानी जाती है

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