क्या है 'जिहाद' (Jihad)और कौन लोग कैसे बनते हैं, जिहादी

 क्या है 'जिहाद' (Jihad)और कौन लोग कैसे बनते हैं, जिहादी


"इस्लाम के जानकार मानते हैं कि जिहाद का शाब्दिक अर्थ अत्यधिक प्रयास या exerted effort है. अत्यधिक प्रयास का अर्थ है खुद में बदलाव करने की बड़ी कोशिश. कुछ परिस्थितियों में जिहाद को अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना भी बताया जाता है."


कुरान में जिहाद (Jihad in Quran)के मुख्य दो प्रकार कहे गए हैं- जिहाद अल-अकबर और जिहाद अल-असग़र। यहां अकबर और असग़र शब्द पर ध्यान देना होगा। 


उर्दू शब्दकोशों में अकबर का अर्थ है बहुत बड़ा, महान या श्रेष्ठ। असग़र का मतलब है बहुत छोटा। जिहाद अल-अकबर श्रेष्ठ जिहाद है, जबकि जिहाद अल-असग़र छोटे दर्जे का।


जिहाद(Jihad) अल-अकबर इस्लामिक अध्यात्म और नैतिकता से जुड़ा है। अपनी ख़ुद की और समाज के भीतर की बुराइयों से लड़ना, नस्लीय भेदभाव को रोकना और औरतों के अधिकारों के लिए प्रयास करना, एक बेहतर तालिबानी यानी छात्र बनना, एक बेहतर व्यवसायी, एक बेहतर सहयोगी बनना, माता-पिता की सेवा करना, अपनी नफ्स अर्थात इंद्रियों को काबू में रखना और सबसे ऊपर अपने क्रोध को काबू में रखना जिहाद अल-अकबर है।


जिहाद अल-असग़र काफिरों और पाखंडियों के ख़िलाफ़ संघर्ष से जुड़ा है। इसे और दो भागों में बांटा जाता है। पहला, लेखन और जबानी जिहाद और दूसरा तलवारी जिहाद।

इसके और भेद विकसित होते जा रहे हैं जैसे कि राजनीतिक जिहाद, सामाजिक जिहाद, भौगोलिक जिहाद, लव जिहाद(Love Jihad), वैश्विक जिहाद और विषयों के अनुसार कई और। कुरान और हदीस में इसे कनिष्ठ जिहाद माना गया है। लेकिन, दुनियाभर में तलवारी जिहाद यानी गुरिल्ला या सैनिक युद्ध ही सबसे बड़ा जिहाद बन गया है।


अरबी में जिहाद या जेहाद दोनों शब्द एक ही अर्थ में आते हैं। यह शब्द जहद धातु से बना है। इसका अर्थ है संघर्ष करना, प्रयास करना। इसका अर्थ युद्ध नहीं। युद्ध के लिए अरबी में गज़वा या मगाज़ी शब्द का इस्तेमाल होता है।


इस्लाम में यह तबका बेहद छोटा है जो आतंकवाद या हिंसा से जिहाद को जोड़ता है. ये ऐसी ताकतें हैं जो अपनी बात रखवाने के लिए हथियार का सहारा लेती हैं.


इस्लाम में भी इस पर मतभेद बताया जाता है क्योंकि मुस्लिम धर्मगुरु और विद्वान मानते हैं कि इस शब्द को गलत नजरिये से पेश किया जाता रहा है जबकि कुरान में इसका जिक्र बहुत ही साफ है. जिहाद का अर्थ है खुद की बुराइयों पर विजय पाना.


मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि जिहाद कभी दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि खुद के अंदर बैठी बुराइयों से पार पाने के लिए शुरू की गई कोशिश है. इससे इतर एक तबका वह भी है जो मानता है कि जिहाद हमेशा बाहरी ‘दुश्मनों’ के खिलाफ छेड़ा जाता है.


जानकार मानते हैं कि ‘जिहाद’ का दुरुपयोग भी काफी हुआ है. अब इसे आतंकवाद से जोड़ कर देखा जा रहा है कि क्योंकि जिहाद की आड़ में खून-खराबा और हिंसा को वाजिब ठहराने का प्रचलन देखा जा रहा है.


इस्लाम में यह तबका बेहद छोटा है जो आतंकवाद या हिंसा से जिहाद को जोड़ता है. ये ऐसी ताकतें हैं जो अपनी बात रखवाने के लिए हथियार का सहारा लेती हैं. इसका बड़ा उदाहरण 1980 के दशक में अफगानिस्तान में देखने को मिला जब हजारों मुस्लिम युवा सोवियत यूनियन के खिलाफ जंग में शामिल होने पहुंचे. उनके दिमाग में यह बात थी कि वे जिहाद कर रहे हैं. इसी आधार पर उन्होंने अपने को मुजाहिदीन का नाम दिया. यह वही शब्द है जिसकी जड़ें भी जिहाद से जुड़ी हैं.

इसी दौरान एक तबका ऐसा पनपा जो आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को जिहाद मानने लगा. यह तबका ओसामा बिन लादेन का सहचर था. हालांकि इसकी संख्या काफी कम थी लेकिन इनका कॉनसेप्ट बेहद मारक होने के चलते देखते-देखते पूरी दुनिया में पसर गया. इस तबके ने अमेरिका के खिलाफ जंग छेड़ी. इस तबके ने जनमानस में यह बात बिठाने की कोशिश की वे जो जिहाद कर रहे हैं, अमेरिका के ‘क्रूसेडर’ से लोहा ले रहे हैं, वहीं असल में जिहाद है और बाकी सब मिथ्या. अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद यह कॉनसेप्ट और तेजी से प्रचलित हुआ और मुस्लिम समाज का एक तबका इसके आकर्षण में पड़ता चला गया.


ऐसे में सवाल है कि आखिर लोग जिहादी क्यों बनते हैं, आखिर कौन सी मानसिकता है जो किसी को जिहादी बनाती है? जानकार मानते हैं कि जिहादियों में तरह-तरह के लोग मिलते हैं जो मनोरोगी हो सकते हैं लेकिन अपने इरादे के प्रति वे बेहद समर्पित होते हैं. कोई आम आदमी आतंकवादी नहीं बनता बल्कि विरले लोग ही इसमें शामिल होते हैं और इसके पीछे बड़ी वजह मनोरोग को माना जाता है.इस जिहाद के प्रति लोगों को उकसाने के लिए आतंकी संगठन मनोरोग को हथियार बनाते हैं और ‘लाचार’ लोगों को हिंसा की राह पर उतारते हैं.

ट्रेनिंग के दौरान लोगों को ज्यादा कट्टर, चरमपंथी बनाने और हिंसा के लिए तैयार करने पर ध्यान दिया जाता है. आगे चलकर हथियारों की ट्रेनिंग और अलग-अलग बम विस्फोटकों के इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाता है.


कश्मीर जैसे स्थानों पर जहां हिंसा की राह पर उतरे युवा बाद में मुख्यधारा में लौटे और अपनी कहानी बयां की. ये युवा बताते हैं कि उन्हें किस कदर गुमराह किया जाता रहा और हिंसा की चलती-फिरती ‘मशीन’ बनाई जाती रही.

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