'वोट'(VOTE) चोर मोदी नही ये थी कांग्रेस नेता; जिस पर कोर्ट ने लगया था प्रतिबंध!
राहुल गांधी को पहले अपने खान-दान का सच जान लेना चाहिए!
1975 आपातकाल (इंदिरा गांधी):
यह सिर्फ़ वोट चोरी नहीं, लोकतंत्र चोरी का सबसे बड़ा वारदात था।
- चुनाव टाले गए
- विपक्ष जेल में
- प्रेस पर ताला
- जनता वोट देने से वंचित
यह भारत की अदालतों द्वारा भी लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला माना गया।
1990–2005 : RJD का जंगलराज:
लालू–राबड़ी राज में बूथ कैप्चरिंग का चरम।
अपराधियों को खुलेआम वोट लूटने का लाइसेंस।
नौकरियों के नाम पर ज़मीन हड़पी,
भय और हिंसा से वोट छीने!
दलित–पिछड़ों को चुनावी हिंसा का सबसे बड़ा शिकार बनाया गया।
यानी कांग्रेस ने जो कल्चर शुरू किया, RJD ने उसे और क्रूर बना दिया।
विडंबना देखिए -
आज वही कांग्रेस और RJD मिलकर “वोट अधिकार यात्रा” निकाल रहे हैं।
जिन्होंने हमेशा जनता के अधिकार छीने,
वे आज अधिकार बचाने का ढोंग कर रहे हैं।
सच्चाई यह है -
यह “वोट अधिकार यात्रा” नहीं, बल्कि
‘नोट के अधिकार’ और ‘लूट-खसोट के अधिकार’ को कायम करने की यात्रा है
पैटर्न साफ़ है:
कांग्रेस ने जब-जब सत्ता डगमगाई, बूथ कैप्चरिंग का सहारा लिया।
राजद ने जब-जब सत्ता बचानी चाही, जंगलराज और अपराध के बल पर जनता का मताधिकार छीना।
ये दोनों पार्टियाँ असल में वोट चोरी की सबसे बड़ी अपराधी हैं।
दरअसल, पूरा मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का है। इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित कर दिया था, लेकिन राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी।
उन्होंने दलील दी कि इंदिरा ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का भी इस्तेमाल किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण के आरोपों को माना सही
राजनारायण के इन आरोपों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सही माना। वोटरों को घूस देना और सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने जैसे 14 आरोप सिद्ध होने के बाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को दोषी मानते हुए छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया।
आपातकाल 25 जून 1975 को लागू हुआ। यह 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक रहा। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर दी।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में इसे सबसे विवादास्पद फैसला माना जाता है। इसे भारतीय लोकतंत्र में काला अध्याय भी कहा जाता है।
आपातकाल का असर
आपातकाल में चुनाव को स्थगित कर दिया गया।
नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की जाने लगी।
पुलिस ने इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया।
इतना ही नहीं, प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
इंदिरा के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया।
आरएसएस(RSS) पर लगा बैन..
आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है यानी आरएसएस पर बैन लगा दिया गया। ऐसा माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और यह सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर सकती है।
पुलिस ने आरएसएस के हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया। हालांकि, संघ ने फैसले को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ सत्याग्रह में हिस्सा लिया।
इसके अलावा, अकाली दल ने आपातकाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया ।
आपातकाल लागू करने के करीब दो साल बाद इंदिरा गांधी ने अपने पक्ष में विरोध की लहर तेज होती देख लोकसभा को भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश की।
हालांकि, यह फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ खुद इंदिरा को अपनी सीट रायबरेली में हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।