ताजमहल न प्रेम का प्रतीक है; और न ही मकबरा, यह है हिन्दू मंदिर "तेजोमहालय"

ताजमहल न प्रेम का प्रतीक है; और न ही मकबरा, यह है हिन्दू मंदिर "तेजोमहालय"


वी डी पांडेय "सिंघम" .... 




ताजमहल मकबरा नही मंदिर है, बिन्दुवार जाने.....*


1212 ईस्वी में, राजा परमर्दी देव ने तेजोमहालय मंदिर महल का निर्माण किया था.


ताजमहल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व में किसी की भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर* ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब?


कुछ इतिहासकार इससे इत्तफाक नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया


इतिहासकार ओक कहते हैं कि ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजोमहालय कहा जाता था


शाहजहाँ ने मुमताज के मरने के बाद उसकी बहन से शादी कर ली थी। अगर इतना ही प्रेम था तो उसके प्रेम के सहारे पूरा जीवन व्यतीत करना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं तो इसमें प्यार कहाँ था?


ताजमहल को पहले ‘तेजोमहालय’ कहते थे। वर्तमान ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है।


वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था।


शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है।


1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं



ताजमहल को दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। हालांकि इस बात को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने बनवाया है या फिर किसी और ने।

हालांकि, ताजमहल का विवादों से गहरा नाता रहा है।

वकील हरीशंकर जैन ने दावा किया कि “1212 ईस्वी में, राजा परमर्दी देव ने तेजोमहालय मंदिर महल का निर्माण किया था, जो वर्तमान में, आम भाषा में ताजमहल के रूप में जाना जाता है।ASI 1874: शाहजहां ने तेजोमहालय में जो तोड़फोड़ और हेराफेरी की, उसका एक सूत्र सन् 1874 में प्रकाशित पुरातत्व खाते (आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खंड में पृष्ठ 216 से 17 पर अंकित है। उसमें लिखा है कि हाल में आगरा के वास्तु संग्रहालय के आंगन में जो चौखुंटा काले बसस्ट का प्रस्तर स्तंभ खड़ा है वह स्तंभ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तंभ उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उद्यान में प्रस्थापित थे।

कई इतिहासकारों ने भी माना है की सुन्दरता का यह बेहद नायाब नमूना ताजमहल या मकबरा न होकर शिव मंदिर है जिसका नाम तेजो महल या तेजोमहालय था।

फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। नदी के पिछवाड़े में हिन्दू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन हिन्दू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।

प्रसिद्ध शोधकर्ता और इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक अपनी पुस्तक “TAJ MAHAL – THE TRUE STORY” द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि, सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था। ओक कहते हैं कि ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजोमहालय कहा जाता था। अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जय सिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था।

ओक दावा करते हैं कि, ताजमहल नाम तेजोमहालय का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कोई शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नहीं करता है ।

ताजमहल को अगर  हटाकर देखा जाए तो ऐसी कोई भी ऐतिहासिक कहानी प्रचलित नहीं है जिसमें लैला मजनू जैसा शाहजहाँ और मुमताज के किस्से कहानी प्रसिद्ध हो। केवल ताजमहल का उल्लेख आने पर ही शाहजहाँ –मुमताज की प्रेमकहानी की याद क्यों आती है। अगर इतना ही प्रेम था तो बाकियों की तरह उनकी भी प्रेम के किस्से इतिहास में होने चाहिए थे। जो की कहीं भी देखने या पढ़ने को नहीं मिलता।

मुमताज बादशाह की चौथी बीवी थी। मुमताज की सुन्दरता को देखकर बादशाह ने उसके पति को मारकर उसे अपनी चौथी बीवी बनाया था। मुमताज ने कुल बादशाह के 14 बच्चों को जन्म दिया और अपने 14 वे बच्चे के जन्म के समय उसकी मृत्यु हुई थी। लेकिन इसके बाद जो किया उससे बादशाह शाहजहाँ और मुमताज के प्रेम की पोल खुलने लगती है। शाहजहाँ ने मुमताज के मरने के बाद उसकी बहन से शादी कर ली थी। अगर इतना ही प्रेम था तो उसके प्रेम के सहारे पूरा जीवन व्यतीत करना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं तो इसमें प्यार कहाँ था?

कार्बन टेस्ट : ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकी प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं।

ओक के अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है। इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।

शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है।

पुरुषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर शोधकार्य करके बताया कि ताजमहल को पहले ‘तेजोमहालय’ कहते थे। वर्तमान ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। इसकी मीनारें बहुत बाद के काल में निर्मित की गई। वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था।ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है।

चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई।

अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बाते हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।


दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

तथाकथित इतिहासकारों और साहित्यकारों ने इसे प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी गाथा को लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसके चलते फिल्में भी बनीं और दुनिया भर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया। यह आज तक जारी है।

राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं। अब विचार करने वाली बात यह है कि यदि इतिहासकार ओक और उपयुक्त सभी अनुसंधान सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, “तेजोमहालय” को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों दिया जाना चाहिए?

ओक के अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है। इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।

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