कांग्रेस की मौनमोहन सरकार आतंकवादी यासीन मलिक को गले लगाती थी;जो हिन्दुस्तान के खिलाफ जहर उगलता और कश्मीरी हिन्दुओ का कत्लेआम करता रहा
कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ आतंकवादी दिल्ली मे कांग्रेसी पीएम के साथ लंच फरमाते थे अब जहन्नुम जा रहे है
मोदी सरकार के आते ही आतंकी 2017 के टेरर फंडिंग केस समेत कई मामलों में आरोपी मलिक काट रहा है जेल
यासीन मलिक मूल रूप से श्रीनगर का ही रहने वाला है और उसपर 4 एयरफोर्स जवानों की हत्या समेत कई गंभीर आरोप हैं।
यासीन मलिक का नाम पूर्व में कश्मीर में हिंसा की तमाम साजिशों में शामिल रहा है। इसके अलावा उसे 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के प्रमुख जिम्मेदार के रूप में जाना जाता है।
यासीन मलिक के परिवार के तमाम लोग अब विदेश में रहते हैं और वो लंबे वक्त से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है।
1980 के दशक में यासीन मलिक ने आतंक का रास्ता थामा था और ताला पार्टी नाम का एक राजनीतिक संगठन बनाया था।
सबसे पहले यासीन मलिक का नाम 1983 के इंडिया वेस्ट इंडीज मैच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप में सामने आया था। इसके बाद 1984 में वह पहली बार जेकेएलएफ के चीफ मकबूल भट की फांसी के बाद इस संगठन के लिए खुलकर सामने आया।
1986 में यासीन मलिक ने जेल से निकलकर ताला पार्टी का नाम इस्लामिक स्टूडेंट लीग कर दिया और इससे कश्मीरी स्टूडेंट को जोड़ने की शुरुआत की।
कुछ वक्त में इस्लामिक स्टूडेंट लीग का संगठन बड़ा हो गया और इसके साथ अशफाक वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम भी जुड़े। अशफाक वानी का नाम 1989 के दौरान उस वक्त देश भर ने जाना जब उसने गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण किया।
1986 में राजीव गांधी की सरकार ने कश्मीर घाटी में गुलाम मोहम्मद शेख की सरकार को बर्खास्त किया और फिर कांग्रेस पार्टी ने फारूक अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस से हाथ मिला लिया। 1987 के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान यासीन मलिक ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट जॉइन कर लिया।
युसूफ शाह और यासीन मलिक को 1987 के इस चुनाव के बाद जेल में डाल दिया गया। जेल के रिहा होने के बाद मोहम्मद युसूफ शाह मोहम्मद एहसान डार के संपर्क में आया, जो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का संस्थापक था।
यूसुफ डार ने इसके बाद अपना नाम बदल लिया और खुद को सैयद सलाहुद्दीन घोषित कर लिया।
1989 तक यासीन मलिक जेकेएलएफ का एक प्रमुख चेहरा बन गया। उसने अशफाक वानी, हामिद शेख और जावेद अहमद मीर नाम के तीन आतंकियों के साथ मिलकर 'हाजी' नाम का एक गुट भी बनाया। यासीन मलिक का नाम 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण के दौरान आया।
इस कांड का प्रमुख साजिशकर्ता अशफाक वानी था। 8 दिसंबर 1989 की इस घटना के बाद 13 दिसंबर को रुबैया को रिहा किया गया। रुबैया को दिल्ली लाने के एवज में सरकार ने सात आतंकियों को रिहा किया जिसका जमकर विरोध हुआ।
रुबैया के अपहरण की घटना के बाद जनवरी 1990 में यासीन मलिक ने श्रीनगर में साथियों के साथ मिलकर 4 एयरफोर्स जवानों की हत्या की।
इसी साल मार्च में यासीन मलिक के साथी अशफाक वानी को मार गिराया गया। इसके बाद अगस्त में यासीन को घायल हालत में गिरफ्तार किया गया। यासीन मलिक की गिरफ्तारी के बाद करीब 4 साल बाद उसे जमानत पर रिहा किया गया।
2002 में अटल बिहारी सरकार के दौरान उसे प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म ऐक्ट (POTA) के तहत गिरफ्तार किया गया।
साल 2006 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक समेत जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग संगठनों और पार्टियों के प्रतिनिधियों को अपने घर मुलाकात के लिए बुलाया। मनमोहन सिंह के साथ इन सभी की राउट टेबल टॉक हुई। यासीन मलिक मनमोहन सिंह से मिलने पहुंचा तो सिंह ने उसका गर्मजोशी से स्वागत भी किया।
इसके बाद यासीन मलिक ने 2007 में सफर ए आजादी के नाम से एक कैंपेन शुरु किया। यासीन ने इस अभियान के दौरान दुनिया भर के तमाम इलाकों में जाकर भारत विरोधी भाषण भी दिए। इसी सफर के दौरान 2013 में उसकी तस्वीर लश्कर ए तैयबा के चीफ हाफिज सईद के साथ भी सामने आई।
मोदी सरकार मे साल 2016 में कश्मीर घाटी की हिंसा के दौरान पत्थरबाजी पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए सरकार ने टेरर फंडिंग केस की जांच शुरू की। इस मामले में 2017 में यासीन मलिक को भी आरोपी बनाया गया। एनआईए की जांच के दौरान यासीन के खिलाफ कई अहम सबूत भी मिले। इसके अलावा कश्मीर समेत घाटी के कई इलाकों में उसकी अवैध संपत्तियों का पता भी चला था। इसी मामले में 25 मई 2022 को अदालत में स्पेशल जज NIA प्रवीण सिंह ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई है।