19 मई : आज ही के दिन पैदा हुए थे गांधी को मारने वाले "नाथूराम गोडसे " ;गांधी की कार्यशैली तुष्टिकरण से नाराज थे ...!
नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या करने का सबसे बड़ा कारण हिंदुओं की बर्बादी और देश का बटवारा बताया था
नाथूराम के भाई और सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गांधी वध क्यों, में किया है. गोपल गोडसे ने अपनी किताब में लिखा है,नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा, "मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं.
हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक. मैं भी वहां था (जहां गांधी की हत्या हुई). आज तुमने अपने पिता को खोया है. मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुंचा है.
तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है. कृप्या मेरा यक़ीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव.
गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है. जिसकी अंतिम पंक्ति है- "अगर सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से पाबंदी हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करता हूं."
गोड्से ने गांधी की कार्यशैली और एकतरफा तुष्टिकरण पर सवाल उठाते हुए लिखा कि " 32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा.
जब कांग्रेस के दिग्गज नेता, गांधी की सहमति से देश के बंटवारे का फ़ैसला कर रहे थे, उस देश का जिसे हम पूजते रहे हैं, मैं भीषण ग़ुस्से से भर रहा था.
व्यक्तिगत तौर पर किसी के प्रति मेरी कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मैं मौजूदा सरकार का सम्मान नहीं करता, क्योंकि उनकी नीतियां मुस्लिमों के पक्ष में थीं. लेकिन उसी वक्त मैं ये साफ देख रहा हूं कि ये नीतियां केवल गांधी की मौजूदगी के चलते थीं."
उनका एक वाक्य ये भी था - " जिस दिन सच्चा इतिहास लिखा जाएगा उस दिन मेरे कार्यों को सराहा जाएगा .. और जब पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी भारत के झंडे के के नीचे बहने लगे , मेरी अस्थियां तब उसमें प्रवाहित करना.. भले ही इसके लिए एक दो पीढ़ी की भी प्रतीक्षा करनी पड़े तो कर लेना. नाथूराम गोडसे जी की अस्थियां आज भी नागपुर में उसी प्रतीक्षा में हैं .
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना-सभा के समय से 40 मिनट पहले पहुंच गए.
जैसे ही गांधी प्रार्थना-सभा के लिए परिसर में दाखिल हुए, नाथूराम ने पहले उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किए अपनी पिस्तौल से तीन गोलियां मार कर गांधी का अंत कर दिया.
गोडसे जी ने उसके बाद भागने का कोई प्रयास नहीं किया. मुक़दमे के लिए नाथूराम गोडसे जी को सर्वप्रथम पंजाब उच्च न्यायालय में पेश किया गया.
गांधी की हत्या के बाद दिया था ये बयान
गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद कोर्ट में जज के सामने खुद पर गर्व होने की बता कही थी। उसने कहा था कि गांधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा और हिंदुस्तान के दो तुकड़े कर दिए। उसका मानना था कि गांधी जी ने सारे प्रयोग हिन्दुओं की कीमत पर किए थे।
"गोडसे ने अपने बयान में कहा था कि महात्मा गांधी के कारण मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे और कांग्रेस तुष्टिकरण की नीति अपना रही थी। उसने कहा कि मेरे अंदर विभाजन के चलते गुस्सा था, जिससे हिंदुओं को केवल बर्बादी और विनाश मिला था, इसी कारण मैंने गांधी की हत्या की।"
एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद 8 नवम्बर 1949 को उसे मृत्युदंड प्रदान किया गया.
कम लोगों को पता है कि कश्मीर के कुख्यात आतंकियों तक के शव उनके परिवार को दे दिया जाता है जिसमे सेना विरोधी, भारत विरोधी नारे लगते हैं और आतंकी उन्हें बन्दूकों की सलामी देते हैं लेकिन नाथूराम गोडसे जी का शव इन्ही तथाकथित मानवता के ठेकेदारों ने उनके घर वालों को नही दिया था बल्कि तत्कालीन सरकार के आदेश पर जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे पर उन्हें जला दिया था.
एक नजर ..
*नाथूराम विनायक गोडसे (19 मई 1910 - 15 नवंबर 1949*)
गोडसे, पुणे के एक हिंदू राष्ट्रवादी, जो मानते थे कि गांधी ने भारत के विभाजन के दौरान भारत के मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन किया था। नारायण आप्टे और छह अन्य लोगों के साथ मिलकर गोडसे ने गांधी की हत्या की साजिश रची।
नाथूराम विनायकराव गोडसे का जन्म एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, विनायक वामनराव गोडसे, एक डाक कर्मचारी थे; उनकी माँ लक्ष्मी (नव गोदावरी) थीं। जन्म के समय, उनका नाम रामचंद्र था।
गोडसे 1932 में एक संघी (महाराष्ट्र) कार्यकर्ता के रूप में सांगली (महाराष्ट्र) में आरएसएस में शामिल हो गए, और एक साथ दोनों दक्षिणपंथी संगठनों के हिंदू महासभा के सदस्य बने रहे।