राजा जयचंद को क्यों कहा जाता है गद्दार? कौशांबी से क्या था संबंध..जाने!
वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे भी दिखा कौशाबी मे जयचंदी सोच का असर !
जब मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर हमला किया, तो जयचंद ने गौरी का साथ दिया था. हालांकि गौरी के साथ पृथ्वीराज की दो बार लड़ाई हुई.
पहली लड़ाई में पृथ्वीराज जीत गया और दूसरे में जयचंद ने पृथ्वीराज का साथ नहीं दिया. वो गौरी के साथ मिल गया था और उस युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई थी.
राजा जयचंद्र ने 11वीं शताब्दी में कन्नौज की राजगद्दी संभाली थी. उन्हें यहां की सत्ता अपने पिता विजय चन्द्र से विरासत में मिली थी.
राजा जयचंद राठौड़ 1170 से 1194 ईस्वी तक उत्तर भारत के गढ़वाल वंश के राजा थे. उन्होंने गंगा नदी के पास में बने कन्नौज अंटार और वाराणसी सहित अंटारवेदी देह पर शासन किया था. जहां राजा जयचंद के दो बच्चे थे.
बेटे का नाम हरिश्चंद्र था वहीं, बेटी का नाम संयोगिता था. उस समय के सम्राट पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के बीच प्रेम प्रसंग हो गया. लेकिन जयचंद इस प्रेम प्रसंग के खिलाफ थे. चूंकि, पृथ्वीराज बल में और सेना की संख्या में बहुत ही ताकतवर था अपनी ताकत का फायदा उठाते हुए और अपने बल पर संयोगिता का अपहरण करके पृथ्वीराज ने शादी की थी.
राजा जयचंद को पसंद नहीं आई, राजा जयचंद शुरुआत से ही पृथ्वीराज को नहीं पसंद करते थे और अपनी बेटी के साथ इस तरह की घटना के बाद राजा जयचंद अंदर ही अंदर पृथ्वीराज को अपना शत्रु मारने लगे.
राजा जयचंद ने अपना बदला लेने के लिए अंदर ही अंदर मोहम्मद गोरी से जाकर मित्रता कर ली और पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ खड़ा हो गया.
जहां दोनों ने मिलकर पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण बोल दिया और पृथ्वीराज चौहान को हराकर उसको बंदी बना लिया है.
इसके बाद से पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद को लेकर इतिहासकारों ने राजा जयचंद को गद्दार बता डाला.
1192 के तराइन युद्ध में मोहम्मद गौरी की काफी विशाल सेना था. कहा जाता है कि पृथ्वीराज को गौरी के खतरे का अंदाज़ा हुआ, उन्होंने राजाओं से मदद मांगी. कई राजाओं ने मदद की, लेकिन कन्नौज के राजा जयचंद ने उनकी मदद नहीं की.
कौशांबी जिला तमाम ऐतिहासिक स्थानों में समृद्ध है। कड़ा धाम व प्रभाष गिरि मुख्य स्थल हैं। कड़ा धाम में मां शीतला मंदिर, छत्रपाल भैरव मंदिर, हनुमान मंदिर, कालेश्वर महादेव मंदिर तो है ही, राजा जयचंद का किला भी है।
जिसका 900 साल पहले कड़ा में गंगा तट पर राजा ने कराया था निर्माण ।
खुद का साम्राज्य बढ़ने के बाद उसने सैनिकों के रुकने के लिए कड़ा में गंगा किनारे किले का निर्माण कराया। इस किले से दिल्ली तक की सुरंग बनवाई।
इतिहास के पन्नों पर दर्ज इसी सुरंग से जयचंद्र की सेना दिल्ली और कड़ा आती-जाती थी। कड़ा में बने किले का अधिक हिस्सा खंडहर में तबदील हो गया है।
बचे हुए चंद हिस्से को पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में ले रखा है। देखरेख के अभाव में अब किला भवन की दीवार में लगी ईंटें धसकने लगी हैं। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इस ऐतिहासिक इमारत के जमींदोज होने में समय नहीं लगेगा।
इमारत के गिरते ही यहां पर 52 बीघे में फैले जयचंद्र के किले का खंडहर ही रह जाएगा।