सेंगोल !देश के अंदर भारतीय परंपरा और भारत के बढ़ते मान सम्मान से कांग्रेस को इतनी नफरत क्यों है

सेंगोल !देश के अंदर भारतीय परंपरा और भारत के बढ़ते मान सम्मान से कांग्रेस को इतनी नफरत क्यों है?


सेंगोल 28 मई को मदुरै आदिनम के प्रधान पुजारी द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला 28 मई को नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे।


नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के पास सेंगोल (राजदंड) को भी स्थापित करने पर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस ने सेंगोल के भारत की आजादी के समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के दावे को फर्जी बता दिया है।
28 मई को अमृत महोत्सव के इस पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन को देश को समर्पित करेंगे। नए संसद भवन में सैंगोल को स्थापित किया जाएगा। इसके बारे में स्पष्ट है कि यह परंपरा न्याय पूर्ण और निष्पक्ष शासन की है। यह हमारे इतिहास की पहचान है। कांग्रेस का नेतृत्व देश के धर्म, अध्यात्म और संस्कृति पर आक्रमण करता आया है। एक बार फिर उन्होंने भारत की संस्कृति पर आक्रमण किया है।

क्या है सेंगोल:एक नजर.....
सेंगोल शब्द तमिल शब्द 'सेम्मई' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'धार्मिकता'। यह चोल साम्राज्य की एक भारतीय सभ्यतागत प्रथा है, जो सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में अग्रणी राज्यों में से एक था।
प्राचीन भारत में राजा सेंगोल यानी राजदंड एक प्रतीकात्मक छड़ी रखते थे। ऐसे माना जाता है कि यह जिसके पास भी होती है, उस राज्य का शासन उसके आदेश से ही चलता है। इस छड़ी के ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी को बनाया गया है। जिसके थोड़े नीचे दो झंडे बनाए गए है। भाजपा का कहना है कि भारत की आजादी के समय यह सेंगोल सत्ता हस्तांतरण के रूप में ब्रिटेन द्वारा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था। जिसे बाद में प्रयागराज के म्यूजियम में रख दिया गया है।
सेंगोल पांच फीट लंबा चांदी से निर्मित और सोने की परत चढ़ाया हुआ दंड है। चोल साम्राज्य में सत्ता का हस्तांतरण इसी के माध्यम से होता था। अंग्रेजों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करने के लिए 14 अगस्त, 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा ऐतिहासिक राजदंड 'सेंगोल' प्राप्त किया गया था।

सेंगोल बताता है कि दुनिया फ्लैट नहीं है, गोल है और अंततः वहीं लौटती है जहां उसे लौटना चाहिये था। सेंगोल यह भी बताता है कि सत्ता का चक्र परिवर्तन होता रहता है। वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाती रहती है। जैसे गीता के ज्ञानांतरण की एक परंपरा है, वैसे ही सत्तांतरण की भी। आज मैं हूँ जहां कल कोई और था। ये भी इक दौर है वह भी एक दौर था। महाभारत के शांतिपर्व के राजधर्मानुशासनपर्व में सबसे पहले शिव इसे विष्णु को देते हैं।
अब कांग्रेस को स्पष्ट करना होगा कि सेंगोल को संग्रहालय में 'वाकिंग स्टिक' के रूप में क्यों चिह्नित किया गया था

सवाल ये भी है कि इतनी पवित्र वस्तु को नेहरू जी की वॉकिंग स्टिक बता कर 75 साल तक इलहाबाद के संग्राहलय में क्यों रखा गया? अब अगर नरेन्द्र मोदी ने इस सेंगोल को फिर से गरिमा लौटाई है, लोकतन्त्र के सबसे बड़े मंदिर में स्पीकर के आसान के बगल में स्थापित करने का फैसला किया है, तो इसमें गलत क्या है? इसका विरोध क्यों?

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