तपती गर्मी मे लकड़ी से खाना बनाने को मजबूर है रसोईया;धुए के गुबार से पठन पाठन हो रहा है प्रभावित
न्यूज़ कौशांबी
डी पी सिंह की रिपोर्ट
सरसावा: ब्लाक के चक गुरैनी के विद्यालय में हमारी टीम जांच करने पहुंची तो हेड मास्टर सुनैना देवी स्कूल मे इधर-उधर नजर बचाने लगी। मीडिया से बचती रही लेकिन मीडिया ने आखिर सुनैना देवी का वर्जन ले ही लिया।
चक गुरैनी में 19 तारीख को मीनू का सर्वे किया गया की रसोई में खाना कैसे बनाया जाता है..
रसोई में रसोईया से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि हेड मास्टर सुनैना देवी लकड़ी से ही खाना बनवाती हैं और वह भी बंद कमरे में इस तरह की तपन और आच मे खाना बनवाया जाता है। खाना बनाने वाली महिला ने बयान दिया कि हमने कई बार कहा हैं फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई है ।
जब आज मीडिया पहुंची तो सुनैना देवी से बात किया तो उन्होंने कहा कि इस बार पैसा स्कूल पोतने के लिए आएगा तो हम सिलेंडर ले लेंगे।
इसी तरह तरौरा पूर्व म स्कूल की हालत देखने को मिली वहां तो स्कूल में हेड मास्टर श्री चंद गायब पाए गए और उनकी कुर्सी पर राखी बोरी बच्चों को पढ़ाती मिली ।
श्री चंद स्कूल से गायब थे तरौरा का स्कूल भगवान भरोसे ही चल रहा है ।वहां पर एक ही अध्यापक मौजूद रहे और एक अध्यापिका की तबीयत खराब होने पर वह अवकाश पर रही।
इसी तरह प्राथमिक विद्यालय लकौडा
की हालत पाई गई है वहां भी किचन में खाना लकड़ी से ही बनाया जाता है वहां के अध्यापक सुरजीत सिंह से बात हुई और मौजूद अध्यापक से भी बात हुई तो उन्होंने बताया कि खाना लकड़ी से ही बनाया जाता है घर पर यदि सिलेंडर नहीं रहा तो फैमिली घर वालों को परेशान करती है।
क्योंकि उन्हें आंख में धुआं लगता है और स्कूल में खाना बनाने वाली महिलाओं के आंख में धुआं नहीं लगता है यही सोच इन मास्टरों की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओ को उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर की व्यवस्था करा रहे है ।
फिर भी अध्यापको को शर्म नहीं आती है कि हम लोग यह काम अच्छा नहीं कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार इन्हें इतनी तनख्वा देती है फिर भी इनका पेट खली का खाली रह जाता है कही बच्चों के मीनू में कमी तो कहीं सिलेंडर ही नहीं स्कूल में कहीं फल नहीं दिया जाता तो कहीं दूध नहीं दिया जाता।
मंगलवार के दिन जांच की गई तो सब्जी चावल ही बना मिला दाल महंगी होने के कारण स्कूल में दाल बच्चों को नहीं दिया जाता। जितने पैसे में बच्चों को दाल खिलाई जाएगी उतने में खुद उनके परिवार का खर्च चल जाएगा ।
इसलिए प्राइमरी के गरीब व मजलूम किस्म के अध्यापक बच्चों का पेट काटकर अपना पेट भरने में लगे हैं।