कश्मीर की आज़ादी के नाम पर जिहादियो ने एक स्त्री से गैंगरेप कर शरीर को बीच से फाड़ डाला..हैवानियत की इन्तेहा

कश्मीर की आज़ादी के नाम पर जिहादियो ने एक स्त्री से गैंगरेप कर शरीर को बीच से फाड़ डाला..हैवानियत की इन्तेहा


कश्मीर फ़ाइल्स..मे दिखाया गया महज 40 % हकीकत..जिसमे कांप जाए रूह


किसी स्त्री का बलात्कार करने के उपरांत आरा मशीन से उसे दो भागों में चीर देने की किसी घटना के बारे में आपने सुना है? और दो भाग भी ऐसे कि उसके गुप्तांग से आरी चलाते हुए दोनों वक्ष स्थलों को दो भाग में करते हुए माथे को दो भाग में चीर देना।


सुना है आपने?


नहीं??? 


लेकिन आपने फिलिस्तीन में, सीरिया में शरणार्थियों के बुरे हाल के बारे में जरूर सुना होगा. सुना है कि नहीं? कई लोग तो फिलिस्तीन पर कवितायेँ लिख कर महान भी बन गए। खैर!! छोडिये उसको  जिसके बारे में आपने सुना है,  आइये! उसके बारे में जानें और तय करें कि हमने उसके बारे में क्यों नहीं सुना। किसी स्त्री के साथ होने वाली इतनी लोमहर्षक घटना आप तक क्यों नहीं पहुँच पायी? किसी ने उसकी इस खौफनाक मौत पर अफ़सोस क्यों नहीं जाहिर किया?

 

उस स्त्री का नाम था गिरिजा टिक्कू। जो 25 वर्ष की एक ख़ूबसूरत महिला थी एवं कश्मीर के बांदीपोरा में एक शिक्षिका थी। 1990 में जब आतंकवाद बढ़ा तो वह बांदीपोरा छोड़ कर बाहर निकल गयी लेकिन वह अपना सामान नहीं ले जा पायी थी। एक दिन किसी के यह कहने पर कि अब वहां स्थिति सामान्य है, वह बांदीपोरा अपना सामान लाने गयी। लेकिन वहां से वह वापस नहीं आ पायी। एक शिक्षिका जो अपना सामान लाने गयी थी का भीड़ के द्वारा बलात्कार किया गया।


लेकिन बलात्कार इस देश में कौन सी बड़ी घटना है, यह तो होता ही रहता है... आपने सुना नहीं लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं... लेकिन बलात्कार के बाद जो हुआ वह अत्यंत वीभत्स था एवं सम्पूर्ण मानव इतिहास को कलंकित करने वाला था। बलात्कार के बाद उसके शरीर को उसके गुप्तांगो के पास से आरी चलाकर दो भागों में काट दिया गया एवं सड़क के किनारे फ़ेंक दिया गया...


लेकिन इतनी बड़ी घटना अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर अपना स्थान नहीं बना पायी। देश के लोगों को इसकी खबर नहीं हुई। कोई कैंडल मार्च नहीं निकला... कोई सभा नहीं हुई... क्यों?


कश्मीर की आज़ादी के नाम पर एक स्त्री से ऐसा व्यवहार क्या भुला देने योग्य था? लेकिन ऐसा हुआ।


यहाँ यह बात दृष्टव्य है कि यह घटना 25 जून 1990 की है, उस समय वीपी सिंह प्रधान मंत्री थे एवं मुफ़्ती मोहम्मद सईद उनके गृह मंत्री। 


आपको बताता चलूँ कि 19 जनवरी 1990 को जब कश्मीर में मस्जिदों से यह घोषणा की गयी कि कश्मीर के हिन्दू काफ़िर हैं एवं वे कश्मीर छोड़ दें या इस्लाम कबूल कर लें या मारे जायें और जो पहला विकल्प चुने वे अपनी औरतों को छोड़ कर जाएँ।


विषय यह है कि गिरिजा टिक्कू की खबर आप तक कभी क्यों नहीं पहुंची। एक व्यक्ति को अभी हाल ही में फोर्सेज ने जीप के आगे बिठाकर घुमाया तो इसपर काफी चर्चा हुई एवं उसके मानवाधिकार पर गहरी चिंता जाहिर की गयी तो फिर गिरिजा टिक्कू के मानवाधिकार का क्या हुआ? उसके परिवार पर क्या बीती होगी? मैं अभी जब उसके यंत्रणा की कल्पना करता हूँ तो सिहर उठता हूँ... कश्मीर मांगे आज़ादी का समर्थन करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ कि आपने कभी गिरिजा टिक्कू के बारे में क्यों नहीं बातें की? आपको कभी गिरिजा टिक्कू के बारे में क्यों पता नहीं चला? कश्मीर की आजादी किसके लिए? कश्मीर मांगे आज़ादी या कश्मीर मांगे निज़ामे मुस्तफा का नारा लगाने वाले या कश्मीर मांगे आज़ादी का समर्थन करने करने वाले, एक बार गिरिजा टिक्कू को जरूर याद कर लें!!!


मैं सोचता हूँ कभी गिरिजा टिक्कू के ऊपर एक कविता लिखूंगा. कितना दर्द, कितनी असह्य पीड़ा से गुजरी होगी वह, जब उसके शरीर को शर्मशार करने के बाद आरी से दो भागों में काटा जा रहा होगा और उन्मादी भीड़ मज़हबी नारे लगा रही होगी एवं चिल्ला रही होगी “कश्मीर मांगे आज़ादी”। यह सोचकर ही मेरी कलम रूक जाती है। मैं कभी इससे ज्यादा नहीं सोच पाता हूँ।


यह सत्य है गिरिजा टिक्कू तुम्हारी पीड़ा को मैं शब्द दे सकूं इतनी क्षमता नहीं है अभी मुझमें। लेकिन एक दिन मैं लिखूंगा तुम्हारे लिए एक छोटी सी कविता। ना ना उस लोमहर्षक घटना के बारे में नहीं बल्कि उससे पहले के बारे में जब तुम  अपने पिता की एक प्यारी बेटी थी और कश्मीर की वादियों में उन्मुक्त तितली की भांति घुमती फिरती थी अपने भविष्य के सपने बुनते हुए। तुम्हारी उस ख़ुशी के बारे में जब तुम्हे शिक्षिका की नौकरी मिली थी और हाँ तुम्हारे प्रेम के बारे में। मैं लिखूंगा गिरिजा टिक्कू यह वादा रहा।


मेरा मन उनके प्रति घृणा से भर जाता है, जो पत्थरबाजों की लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं और उग्रवादियों की फांसी रुकवाने के लिए रात को सुप्रीमकोर्ट खुलवा देते है लेकिन कभी तुम्हारी चर्चा नहीं करते...                                   


मैं शर्मिंदा हूँ...

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