मणिपुर हिंसा:हिन्दुस्तान मे ही हिन्दुओ को काटा-मारा और जलाया जा रहा है, वह अपने घर छोड़कर भागने को विवश आखिर कब तक?
अपने ही देश व प्रदेश मे अपने ही अधिकार नही मिल पा रहे है मैती समुदाय को
मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की आग में जल रहा है.हिंसा की वजह से अब तक लगभग 9000 लोग विस्थापित हुए हैं.क इ लोग मारे गये और घरो को आग के हवाले कर दिया गया ।हिन्दुओ का मैती समुदाय अपने जान माल को बचाकर घर-परिवार छोड़कर भाग रहा है ।फिरंगियो का कुकी नागा समुदाय दंगा कर गोली बारी कर रहा है ।
मणिपुर में बीजेपी की अगुआई वाली सरकार ने फ़रवरी महीने में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था.
लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन हालात बेक़ाबू तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश से हुआ.
हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे जिसमें ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी.
मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है.
मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक इसी समुदाय से हैं.90 प्रतिशत पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र में प्रदेश की 35 फ़ीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं.
लेकिन इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुँचते हैं.मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है और बाक़ी मुस्लिम.
जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं. ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं.
मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है. इसके अलावा ये पढ़ने-लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं.
यहाँ के जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे. ऐसे में वे और हाशिए पर चले जाएंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रदेश में बीरेन सिंह की सरकार अफ़ीम की खेती को नष्ट कर रही है और कहा जा रहा है कि इसकी मार म्यांमार के अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रही है.
मशहूर बॉक्सर मैरी कॉम ने एक ट्वीट में आगजनी की कुछ तस्वीरें साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को टैग किया है और लिखा है, "मणिपुर जल रहा है, कृपया मदद करें."
आपको बता दे कि सबसे ज़्यादा हिंसक घटनाएं विष्णुपुर और चुराचांदपुर ज़िले में हुईं हैं. जबकि राजधानी इंफ़ाल से भी गुरुवार सुबह हिंसा की कई घटनाएं सामने आईं हैं.तोरबंग इलाक़े में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' रैली में हज़ारों आंदोलनकारियों ने हिस्सा लिया था, जिसके बाद जन-जातीय समूहों और ग़ैर-जनजातीय समूहों के बीच झड़पें शुरू हो गईं.
दरअसल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करने के लिए कहा था.
कोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार को भी इस पर विचार के लिए एक सिफ़ारिश भेजने को कहा था.
इसी के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने बुधवार को राजधानी इंफ़ाल से क़रीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर ज़िले के तोरबंग इलाक़े में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' रैली का आयोजन किया था. इस रैली में हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.
कहा जा रहा है कि उसी दौरान हिंसा भड़क गई.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजोबम कहते हैं, "प्रदेश में यह हिंसा एक दिन में नहीं भड़की है. बल्कि पहले से कई मुद्दों को लेकर जनजातियों में नाराज़गी पनप रही थी. मणिपुर सरकार ने ड्रग्स के ख़िलाफ़ व्यापक अभियान छेड़ रखा है."मणिपुर के वरिष्ठ पत्रकार युमनाम रूपचंद्र सिंह कहते हैं, "मणिपुर में मौजूदा व्यवस्था के तहत अभी मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी ज़िलों में जाकर नहीं बस सकते. मणिपुर के 22 हज़ार 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में महज़ 8 से 10 प्रतिशत ही मैदानी इलाक़ा है."
"मैतेई समुदाय की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि पहाड़ी इलाक़े में बसे लोग मैदानी इलाक़ों में जाकर बस सकते हैं लेकिन मैतेई लोग वहां बस नहीं सकते. कृषि भूमि में जनजातीय लोगों का दबदबा बढ़ रहा है. लिहाज़ा इस तरह की कई बातों को लेकर यह पूरा टकराव है."
मणिपुर में 3 मई को हिंसा कि चिंगारी भड़क गई और इसने आग का रूप लेकर कई घरों को तबाह कर दिया. कई घंटों तक पूरा मणिपुर सुलगता रहा और सुरक्षाबल इस पर काबू पाने के लिए मशक्कत करते रहे. हालात ये हैं कि अब दंगाइयों को देखते ही गोली मारने की आदेश जारी कर दिए गए हैं. मणिपुर के कई जिलों में कर्फ्यू है और इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी गई है.
