कांग्रेसी नेताओं ने 1948 मे ब्राह्मणों का नरसंहार किया था;कांग्रेस का हाथ ब्राह्मणो के खून से सने है

 कांग्रेसी नेताओं ने 1948 मे ब्राह्मणों का नरसंहार किया था;कांग्रेस का हाथ ब्राह्मणो के खून से सने है


आज़ाद भारत का सबसे पहला नरसंहार यही था, जिसमें असंख्य ब्राह्मणों की नृशंस हत्या कर दी गई


गाँधी के मुस्लिम तुष्टिकरण के रवैये से नाराज़ होकर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को उन्हें गोली मार दी थी



कश्मीर फाइल्स ने जहा एक ओर कश्मीरी पंडितो के नरसंहार के जख्म को हरा किया वही एक नरसंहार 1948 को भी याद रखना जरूरी है, ताकि कांग्रेस के असली डीएनए को पहचाना जा सके। 


तब महात्मा गांधी की हत्या के बाद हजारों ब्राह्मणों का नरसंहार कांग्रेस ने किया था।


बहुत कम लोग जानते हैं कि 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या के बाद देश में एक भयावह नरसंहार हुआ था। 


गाँधी के मुस्लिम तुष्टिकरण के रवैये से नाराज़ होकर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को उन्हें गोली मार दी थी। 


नाथूराम पर जब मुकदमा चला तो उसे अपनी करनी की सज़ा अदालत ने दी। 


इस हत्याकांड के लिए गोडसे को अम्बाला की एक जेल में फाँसी दे दी गई मगर तत्कालीन सत्तारूढ़ कॉन्ग्रेस पार्टी ने गाँधी की हत्या होते ही नरसंहार की आग को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 



गाँधी के भक्तों और पार्टी के अनुयाइयों ने गोडसे की जाति के लोगों को निशाना बनाया।


31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी तक पुणे में ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा का ज़बरदस्त नंगा नाच चला। 

देखते ही देखते हिंसा की यह चिंगारी जंगल की आग की तरह आग चितपावन ब्राह्मणों की बहुतायत वाले इलाको में फ़ैल गई। 


इनमें सांगली, कोल्हापुर, सातारा शामिल हैं जहाँ सैंकड़ों लोग मारे गए, हज़ारों घरों को आग के हवाले कर दिया गया, स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए ।

आज़ाद भारत का सबसे पहला नरसंहार यही था, जिसमें असंख्य ब्राह्मणों की नृशंस हत्या कर दी गई। 


अहिंसा के पुजारी गाँधी का पार्थिव शरीर जिस वक़्त माटी का अपना अंतिम क़र्ज़ चुकाने के लिए चिता पर रखा जाना था, उस वक़्त पुणे और आसपास के इलाकों में न जाने कितने 


ब्राह्मणों का नरसंहार हो रहा था। यह नरसंहार हिंदुस्तान के इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जिसके घटनाक्रमों का ज़िक्र किसी ने कभी नहीं किया। उस ज़माने में भी इस सम्बन्ध में अखबार में खबरें कम ही आईं हालाँकि विदेश के अख़बारों ने इस पर रिपोर्ट छापी थी। 


उनकी रिपोर्ट के मुताबिक हत्या की घटना के अगले ही दिन 31 जनवरी 1948 को मुंबई में 15 लोगों की हत्या की गई थी।


उस वक्त की घटनाओं का वर्णन करने वाली किताब ‘गांधी एंड गोडसे’ में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कि ब्राह्मणों के खिलाफ उस वक़्त काफी भयंकर माहौल बना दिया गया था।


 चितपावन ब्राह्मण समुदाय के लोगों की हत्याएँ आम हो गई थीं। इस पर भी जब कॉन्ग्रेस का मन नहीं भरा तो वहाँ ब्राह्मणों का सामूहिक बहिष्कार किया गया।


गांधी की 30 जनवरी 1948 को 78 वर्ष की आयु में मध्य दिल्ली में एक बड़ी हवेली, बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति ) के परिसर में हत्या कर दी गई थी । उनकी हत्या नाथूराम गोडसे, जो पुणे , महाराष्ट्र का एक चितपावन ब्राह्मण , एक हिंदू राष्ट्रवादी , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का सदस्य , एक दक्षिणपंथी हिंदू अर्धसैनिक संगठन और साथ में एक हिंदू सदस्य भी थे। गोडसे का मानना ​​था कि गांधी पिछले वर्ष भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान के प्रति बहुत अधिक उदार थे।


किताब ‘गांधी एंड गोडसे’ किताब के चैप्टर-2 के उप-शीर्षक 2.1 में मॉरिन पैटर्सन के उद्धरणों में इस बात का ज़िक्र किया गया है। अपने उद्धरण में मॉरिन ने बताया है कि कैसे गाँधी के अनुयाइयों द्वारा फैलाई जा रही इस हिंसा में ब्राह्मणों के प्रति नफरत फैलाने वाले संगठनों ने भी हवा दी। इनमें कुछ ऐसे संगठन भी थे जिनका नाम ज्योतिबा फुले से जुड़ा है।


उस वक़्त लेखक मॉरीन ने दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया था। उस समय के अपने संस्मरण को उद्धृत कर उन्होंने लिखा है कि पुलिस के दखल के बाद जाकर कहीं इस भीड़ से सावरकर को शारीरिक क्षति से बचा लिया गया हालाँकि उन्होंने यह भी बताया कि दंगे को लेकर पुलिस ने कभी कोई भी सरकारी रिकॉर्ड उनसे शेयर नहीं किया। कई विश्लेषक मानते हैं कि अगर इस नरसंहार का आँकलन किया जाय तो 1948 का ब्राह्मण नरसंहार 1984 में हुए सिख दंगे से किसी मायने में भी कम नहीं है।


देश में दंगों का सिलसिला बँटवारे के पहले से होता आ रहा है मगर आज़ादी के बाद इसे नियंत्रित कर ख़त्म कर देना जिनके जिम्मे था, उन्होंने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ़ किसी विरासत की तरह आगे बढ़ाया। अफसोस कि ये सत्ता की मलाई भी चापते रहे।

आख़िर किन वजहों से नाथूराम गोडसे ने की महात्मा गांधी की हत्या?


गिरफ़्तार होने के बाद गोडसे ने गांधी के पुत्र देवदास गांधी (राजमोहन गांधी के पिता) को तब पहचान लिया था जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुँचे थे. इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गांधी वध क्यों, में किया है.


नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा, "मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं. हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक. मैं भी वहां था (जहां गांधी की हत्या हुई). आज तुमने अपने पिता को खोया है. मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुंचा है. तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है. कृप्या मेरा यक़ीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव."


देवदास ने तब पूछा, "तब, तुमने ऐसा क्यों किया?"


जवाब में नाथूराम ने कहा, "केवल और केवल राजनीतिक वजह से."


नाथूराम ने देवदास से अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा लेकिन पुलिस ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. अदालत में नाथूराम ने अपना वक्तव्य रखा था, जिस पर अदालत ने पाबंदी लगा दी.


गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है. जिसकी अंतिम पंक्ति है- "अगर सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से पाबंदी हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करता हूं."


गोडसे का जन्म ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसिडेंसी के पुणे जिले के अंतर्गत बारामती में हुआ था. 19 मई 1910 बारामती के विनायक वामनराव गोडसे और लक्ष्मी देवी के घर में जन्मे इस बालक का नाम रखा गया रामचन्द्र. यही बच्चा आगे चलकर इतिहास में नाथूराम गोडसे के नाम से जाना गया.


नाथूराम गोडसे उग्र हिंदूवादी विचारधारा से प्रभावित था. गोडसे को लगता था कि गांधी जो मुस्लिमों को हिंदुओं की अपेक्षा ज्यादा तवज्जो देते हैं. इसके साथ ही वह भारत- पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर भी गांधी जी को दोषी मानते थे.

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